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भगवती सूत्र-श. १ उ. १ आत्मारंभ परारंभ आदि का वर्णन ·
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विवेचन-वाणव्यन्तर देवों की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक पल्योपम की होती है। ज्योतिषी देवों की स्थिति जघन्य पल्योपम के आठवें भाग की और उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की होती है ।
दो से लेकर नौ तक की संख्या को 'पृथक्त्व' कहते हैं । 'पृथक्त्व' यह सैद्धांतिक पारिभाषिक शब्द है । अतः दो मुहूर्त से लेकर नौ मुहूर्त तक को 'मुहूर्त पृथक्त्व' कहते हैं । जघन्य 'मुहूर्तपृथक्त्व' में दो या तीन मुहूर्त समझना चाहिए और उत्कृष्ट में आठ या नौ मुहूर्त समझना चाहिए।
यहां वैमानिक देवों की औधिक स्थिति कही है । औधिक का परिमाण एक पल्योपम से लेकर तेतीस सागरोपम तक है। इसमें जघन्य स्थिति सौधर्म देवलोक की अपेक्षा और उत्कृष्ट अनुत्तर विमानों की अपेक्षा से कही गई है। ..
श्वासोच्छ्वास और आहार का जघन्य परिमाण जघन्य स्थिति वालों की अपेक्षा और उत्कृष्ट परिमाण उत्कृष्ट स्थिति वालों की अपेक्षा से जानना चाहिए । यहाँ संग्रह गाथा कही गई है जो इस प्रकार है
जस्स जाइं सागराइं तस्स ठिई तत्तिएहि पोहि ।
उस्सासो देवाणं, वाससहस्सेहिं आहारो॥. ___ अर्थ-जिन वैमानिक देवों की जितने सागरोपम की स्थिति हो, उनका श्वासोच्छ्वास उतने ही पक्ष में होता है और आहार उतने ही हजार वर्ष में होता है । ऐसा समझना चाहिए।
आत्मारम्भ परारम्भ आदि का वर्णन
___४७ प्रश्न-जीवा णं भंते ! किं आयारंभा परारंभा तदुभयारंभा अणारंभा ?
४७ उत्तर-गोयमा ! अत्थेगइया जीवा आयारंभा वि, परारंभा वि, तदुभयारंभा वि, णो अणारंभा । अत्थेगइया जीवा णो आयारंभा, णो परारंभा, णो तदुभयारंभा, अणारंभा।
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