________________
(६२) सिद्धांतरूपसें-चारनिक्षेप. - पाषाणरूप दूसरी 'वस्तुसें' तीर्थकर स्वरूपकी आकृति ' बनायके, उनका नाम रख दिया 'मूर्ति' सो पाषाणरूप वस्तुका नाम निक्षेप हुवा १ ॥ अब इसी मूर्तिकी आकृतिका, दूसरा उतारा करके, दूर देशमें, स्वरूपको समजना सो, मूर्ति नामकी वस्तुकादूसरा ' स्थापना निक्षेप' २॥ ते मूर्ति रूपका घाट घडनेकी पूर्व अवस्था, अथवा खंडितरूप अपर अवस्था है सो, मूर्ति नामकी 'वस्तुका ' ' द्रव्यनिक्षेप ' ३ और साक्षारूप जो मूर्ति दिखने में आ रही है सो मूर्ति नामकी 'वस्तुका' भाव निक्षेप ४ ॥ इसमें विशेष समजनेका इतना हैकि-जिस महापुरुषकी आकृति बनाई है उनका ' स्थापना निक्षेप ' काही विषय है । और तें साक्षात् स्वरूपकी मूर्ति है सो अपणा स्वरूपको प्रगट करनेके वास्ते 'भावनिक्षेप' का विषय स्वरूपकी ही है। क्योंकि साक्षात् रूप जो जो वस्तुओ है सो तो प्रगटपणे ही अपणा अपणा स्वरूपको प्रकाशमान करती ही है । कारण यह हैं कि-वस्तु स्वरूपका जो साक्षात् पणा है सोई भाव निक्षेप के स्वरूपका है ।। इस वास्ते प्रत्यक्ष रूप जो मूर्ति नामकी वस्तु है सोई मूर्ति नामकी वस्तुका भावनिक्षेप है
॥ इति मूर्ति नामकी वस्तुके चार निक्षेप ॥
सत्यार्थ-पृष्ट. २८ सें-ढूंढनीजी-भगवान्की मूत्तिमेंही, भगवानके चारो निक्षेप हमारी पाससे मनन कराती हुई, लिखती है कि-त्तिका--महावीर नाम, सो नाम निक्षेप १ । महावीरजीकी तरह आकृति सो ' स्थापनानि निक्षेप' २। अपणे आप कबूल करती हुइ लिखती है कि-मूर्तिका द्रव्य है सो भगवानका द्रव्य निक्षेप है, ऐसा हमारी पाससें-मनन कराती हुई उत्तर पक्षमे-हेमका कहती है कि-यहां तुम चूके। ऐसा उपहास्य करती
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org