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(६४) चारनिक्षेपमें-ढूंढनीजीका ज्ञान. हो चुका है. । मूर्ति तो पाषाणरूप वस्तुही अलग हैं. । अगर जो मूर्तिरूप वस्तु है, उनका 'चार निक्षेप' कराना चाहती होगी तो, तूने अलग रूपसें करकेभी दिखा देवेगे । इस वास्ते जो तूंने पृष्ट ३१ तक-कुतर्क फिई है सो तो, वृथाही मगज मारा है. ॥
और पृष्ट ३१ ओ. १२ सेलेके ३२ तक-दो मित्रका, दृष्टांत खडा किया है, सोभी निक्षेपोंका अर्थ समजे विना, अजानको परचानेके लिये अपणी चातुरी दिखाई है ॥
॥ इति मूर्ति में 'चार निक्षेप ' का विचारः ।।
. ॥ अब. चार निक्षेपके विषयमें, ढूंढनीजीको, जो ज्ञान हुवा है सो लिख दिखाते है.
॥ इंद्र १ । मिशरी २ । ऋषभदेव ३ । यह नाम रखनेके वर्ण समुदाय है । और देवताका मालिक १ । इक्षु रसकासार २ । और प्रथम तीर्थंकरका शरीर ३ । यह तीन वस्तुमें नामको रखके उनका चार चार निक्षेप करणेको, ढूंढनीजीने प्रवृत्ति किई है । परंतु, देवताके मालिकों-इंद्र नामको रखके तीनही निक्षेप घटाके दिखाया, । और इक्षु रसकी सार वस्तुमें-मिशरी नाम रखके एक स्थापना निक्षेपही, घटाके दिखाया। और तीर्थकरका शरीररूप वस्तुमें-क्रमभदेव नाम रखके अढाई निक्षेप घटाके दिखाया ॥ कोई पुछेगेकि, यह कैसे हुवा, सो दिखाते है ।
- ढूंढनीजीने, सत्यार्थके प्रथम पृष्टमें, यहलिखाहै कि-"श्रीअनु.योगद्वार सूत्रमें-आदिहीमें, वस्तुके स्वरूपके समजने के लिए,वस्तुके
सामान्य प्रकारसे, चार निक्षेप निक्षेपने(करने) कहै है.गायह सूत्रका · अभिप्राय लेके, लिखा हुवा ढूंढनोजीका लेखसे सिद्ध हुवाके, एक वस्तुके ही; चारनिक्षेप, होने चाहीये ? सो ढूंढनीजीका लेखमें,
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