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तीर्थकरोंमें-- कल्पित निक्षेप.
कर के दिखाती है | परंतु भाव, ओर भात्र निक्षेप, शास्त्राकारने, अलग नही माने है | तीर्थकरोकी विभूतिसहित, उपदेशादि क्रियायुक्तपणा है सोई भावनिक्षेप माना है, देखो हमारा लक्षण और पादार्थ । और घृत घटका दृष्टांत दिया है सो निरर्थक हैं, क्योंकि घृतमें घटपणेका भाव नही आजाता है जो घट है सो घृतका भाव रूप होजावे | क्योंकि घटरूप वस्तु अलग होनेसें घटका भाव, घटही रहेगा, कार्यप्रसंगे घटका चार निक्षेप अलग ही करने पडेंगे.
ढूंढनी - पृष्ट १८ ओ १ से - जेठमल ढूंढक साधुका पक्ष ले के लिखती है के वस्तुका नाम है सो नाम निक्षेप नही | फिर ढूंढनी ओ १० से-सूत्र में तो लिखा है कि-- जीव, अजीवका नाम आवश्यक निक्षेप करे सो ' नाम निक्षेप | अर्थात् नाम आवश्यक है, कि, आवश्यकहीमें ' आवश्यक निक्षेप कर घरे.
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समीक्षा- पाठकवर्ग ? जो जो पदार्थ ' वस्तुरूपे ' एक चिज है, उसकी ‘संज्ञा' समजने के लिये, इच्छापूर्वक वर्ण समुदायका, निक्षेप करके समजना, उसका नाम, नामनिक्षेप है, इस वास्ते नाम, और नामनिक्षेप, अलग कभी न माने जायगे, सोइ विचार पिछे दिखाकेभी आये है, और जो ढूंढनी लिखती है कि-जीव अजीवादिकमें, आवश्यक निक्षेप करें, सो नामनिक्षेप है कि, आवश्य कहीमें - आ. वश्यक निक्षेप करधरे । हम पूछते है कि - पुस्तकरूपे जो वस्तु है सो क्या 'अजीवरूप वस्तु' नहीं है ? जो ढूंढनी छिनकती है । जब 'पुस्तक ' अजीवरूप से वस्तु है तो, आवश्यक नामका निक्षेप, आवश्यकसूत्रमें करना युक्तही है । सो 'नामनिक्षेप' शब्दार्थयुक्त होनेसें, लक्षण कारकेमतसें प्रथमप्रकारका कहाजायगा । और दूसरी वस्तु ओंमें बह नामका निक्षेप दूसरा प्रकारका कहा जावेगा। देखो नाम निक्षेपका लक्षण सूत्र में, इस वास्ते नाम, और नामनिक्षेप, अलग कभी न बनेगा.
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