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स्थापना निक्षेप समीक्षा.
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पणे कहती है। और नाममें आकार, और आकार में नामकोभी, गूसती जाती है । इनकी पंडितानीपणा तो देखो ! ॥ ॥ इति ' प्रथम निक्षेप ' समीक्षा. ॥
अथ ' द्वितीय निक्षेप ' समीक्षा ॥
ढूंढनीजी - स्थापना निक्षेप सो वस्तुका आकार, और नाम सहित, गुण रहित, । सूत्रपाठसें-काष्टपै लिखा, पोथीपे लिखा, इत्यादि, सदसद्रूपसे दश प्रकारकी शास्त्रकारने मानी है, उनका बारां प्रकार करके लिखती है.
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समीक्षा - पाठक वर्ग ? वस्तु है सो तो-गुण और आकार विना, कभी न होगी । और इहां - स्थापना निक्षेपमें तो, जो एक भिन्नरूपें वस्तु है उनको, दूसरी वस्तुमें स्थापित करना है । इसी ही वास्ते सूत्रकारनेभी, " स्थापना " दश प्रकारसें कही है । और आवश्यक सूत्रका, दूसरा निक्षेपभी, दश प्रकारमें ही किया है । और ढूंढनभी-काष्टपैलिखा, पोथीपै लिखा, और आवश्यक करनेवालेका रूप - हाथ जोडे हुये, ध्यान लगाया हुवा, लिखती है। तो क्या - पोथी लिखा हुवा आवश्यक सूत्र, पुण्यात्माको अना दरणीय है ? और आवश्यक क्रियाका ध्यानवाली, साधुकी मूर्ति, क्या -- अप भ्राजना करने योग्य होती है ? । जो यह सूत्र से सिद्ध, और सर्वथा प्रकार मान्य स्थापना निक्षेपको, सत्यार्थ पृष्ट ९ में - निरर्थक लिखती है। बाहरे पंडितानी ? यह सूत्र सिद्धस्थापना निक्षेपको, निरर्थकपणे करनेको प्रयत्न करती है ? जैसें आवश्यक सूत्र, और क्रिया युक्त साधुकी मूर्ति, अमान्य नही । तैसे ही - वीतराग देवकी मूर्ति, अनादरणीय कभी न होगी । हे
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