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(२२) द्रव्य निक्षेप सूत्र. कर रहा है, परंतु क्रियाकाले आगमका कारणरूप " जीवद्रव्य " उपयोग विनाका होनेसें, द्रव्य आवश्यकसें है.
इसमें विशेष यह है कि-नैगमनय-एक उपयोग विनाका हो तो, एक द्रव्यावश्यक मानता है । दो होवे तो दो । तीन होवें तो तीन । ऐसें जितने उपयोग विनाका होवें, उतनाही "द्रव्यावश्यक" मानता है १ । ऐसेही व्यवहार नय मानता है. २ । संग्रह नय-एक वा अनेक, उपयोगवाला, वा उपयोगवालेको, द्रव्यावश्यकवाला, द्रव्यावश्यकवाले, करके मानता है ३ । ऋजुसूत्रनय-एकही अनुपयोगवाला, एकही द्रव्यावश्यक मानता है, न्यारा नही मानता है ४ । शब्दादिक तीन नय है.सो-आवश्यक सूत्रार्थमें उपयोगवालेकोही आवकरूप वस्तुसे मानता है. ७॥२ नो आगमसें-द्रव्य आवश्यक तीन प्रकारसे है-१ आवश्यक सूत्रपठित साधुका प्रेत सो जाणग शरीर।२ नवदीक्षितादिक,के जो आवश्यक सूत्र पढेंगे सो भविष शरीर ।३ यह दोनासे व्यतिरिक्त जाणग,भविअ सरीरसें,व्यतिरिक्त,अर्थात् उपादेय. रूप प्रचलित आवश्यकका विषयसे भिन्न स्वरूप, नाम प्रमाणे स्वरूपको दिखानेवाली क्रिया, उनका यह तीन भेद समजना-मुख धावन, दंत धावन, आदि जो जो क्रियाओ लोको अवश्य करते है सो लोकिक है १ ॥ और चरकादिक साधुओंका, जो यक्षादिक पू. जन विगेरे अवश्य कर्त्तव्य है, सो कु प्रावचनिक स्वरूपके है २ ॥ अब जो जिनाज्ञाका लोप करके, स्वछंदपणे वर्तन करनेवाले, नाम धारी जैन साधु होके, लोक दिखावा पुरती क्रिया, करनेवाले है, उनका यह आवश्य कर्तव्य है सो, लोकोत्तरिक स्वरूपका कहा है ३ ॥ मात्र इहां जैनागमका उच्चारण है, परंतु उपादेय रूप 'भाव' वस्तुसे, व्यतिरिक्तपणे काही है.
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