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________________ (१६) निक्षेपके लक्षण दूहे. 1 मूर्त्तिका | २ | और तीर्थकरों की पूर्व अपर अवस्थाका । ३ । अनादर करनेको प्रवृत्त मान होगा, परंतु जो भव्यात्मा होगा सोतो, तीनकालमेंभी, अनादर करनेको, प्रवृत्त मान न होगा । किंतु शक्ति प्रमाणे, भक्ति ही करनेमें, तत्पर हो जावेगा ॥ ३ ॥ इत्यल मधि - केन । इति तृतीय " निक्षेपका " स्वरूप. ॥ नाम आकृति और द्रव्यका, भावमें प्रत्यक्ष योग । तिनको भाव निक्षेपर्से, कहत है गणधर लोग ॥ ४ ॥ ॥ अर्थ: " भाव वस्तुका " दूसरी जगेंपर श्रवण किया हुवा नाम । १ । और उनकी देखी आकृति ( अर्थात् ) मूर्त्ति ) | २ | और पूर्व अपर कालमें, देख्या हुवा द्रव्य स्वरूप । ३ । यह तीनोकोभी, प्रत्यक्षपणे जिस " भाव वस्तुमें " हम जाण लेवें, सोई " भाव निक्षेपका " विषयभूत पदार्थ है । ऐसा गणधर लोकोने ही, सिद्धांत रूपसे वर्णन किया है ॥ ४ ॥ इति चतुर्थ " भाव निक्षेपका " स्वरूप ।। ॥ इति चारों निक्षेपकं विषयमें शिघ्र बोधक दूहे ॥ सूचना - दुहामें चार निक्षेपके लक्षण, हमारा तरफसे, शिघ्र बोधके वास्ते लिखे है । अगर किसी वस्तुके निक्षेपमें, सिद्धांत कारके अभिप्राय से, फरक मालूम हो जावे तो, सिद्धांतकारके ही वचन निर्वाह कर लेना, परंतु हमारा वचनपर आग्रह नही करना, "कारण यह है कि- महापुरुषोंकी गंभीरताको, हम नही पुरच सकते है । ॥ इहांतक जो चार निक्षेपका विषय कहा है सो, सर्व वस्तुका सामान्यपणेसे, चार निक्षेपका बोध करानेवाली, श्री अनुयोग द्वार सूत्रकी, मूल गाथाका ही अभिप्रायसें कहा है. ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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