SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 426
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३२) तीर्थकरादिकनिंदक, माधव ढूंढक. विपत कालमें वेश बदल इन,मांग मांग कर खायोरी. अ० ॥१२॥ पडी कुरीत कहो किम छुटे, पक्षपात प्रगटायोरी.. अ० ॥१३॥ क्या अचरजकी बात अलीये,काल महातम छायोरी. अ०॥१४॥ स्यान सुमति संवाद मुगुरु मुनि,मगन पसायें गायोरी. अ० ॥१५॥ ॥ इति ।। . सर - - -- - ॥ पुनः ॥ तीन खंडको नायक ताको, रूप बनावे जाली है। देखो पंचम काल कलूकी, महिमां अजब निराली है । टेर ।। . २पामर नीच अधम जन आगे, नाचें दे दे ताली है. दे० ॥ २ ॥ पदमा पतिको रूप धारके, मागें फेरै थाली है. दे० ॥ ३ ॥ बने मात पितु जिनजीके, ये बात अचंभे वाली है. दे० ॥ ४ ॥ जंबूरुप बनाके नांचे, कैसी पडी प्रनाली है. दे० ॥ ५ ॥ ___ इत्यादिक निंदाकी पोथी विक्रम संवत्. १९६५ में आगरे वालोने छपाई है ॥ १. प्रथम देख आजीविका त्रुटनेसें विपत्तिमें आके-लोकाशा बनीयेने, मांग मांगके खाया ? ॥ पिछे गुरुजीके साथ लडाइ हो जानेसें-विपत्तिमें आके, लवजी ढूंढकने-मांग मांगके खाना सरु किया । तुम लोक भी गप्पां सप्पां मारके, उनोंका ही अनुकरण कर रहे हो ? दूरोंको जूठा दूषण क्यों देते हो ? ॥ २ तीर्थकर भगवानके वैरी होके--पितर, भूत, यक्षादिकोंकी प्रतिमाको पूजाने वाले---नीच, अधम, कहे जावेंगे कि---तीर्थंकरोंके भक्त ? उसका थोडासा विचार करो ? ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy