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________________ ( ६ ) भाव निक्षेपका लक्षण. तात्पर्य - जैसे कि - इंद्र पदसें च्यवन होके, मनुष्यपणे प्राप्त हुयेको " इंद्र " कहना, यह भूतकालकी अपेक्षासें | और मनुष्य पदसें च्यवन होके, इंद्रपणे उत्पन्न होने वाले मनुष्यकोभी " इंद्र कहना, यह भावी कालकी अपेक्षासें । जैसेंकि - पुत्रको पट्टाभिषेक करके, राज कार्य निवृत्त हुये राजाकोभी, “राजा " कहना । से अथवा राज्य प्राप्त होने वाला कुमरको, " राजा " कहना । इहां १ चेतन वस्तु, कारण रूप द्रव्य है || अब जो काष्टादिक वस्तुसें, उत्पन्न हुयेली, डब्बी आदिक वस्तुमें, काष्टका आरोप करणा ।। अथवा काष्टादिकसे, उत्पन्न होने वाली, डब्बी आदि वस्तु काष्ट मेंही है वैसा मान लेना, सो इहां दोनो जगें पर २ अचेतन, काष्ट ही कारणरूप द्रव्य है । ऐसें ही जो चेतन अचेतनरूप वस्तुसे, उत्पन्न हुयेली, अथवा उत्पन्न होने वालीं, वस्तु होवें, उनका कारण, ३ चेतन अचेतनरूप, समजना ॥ यह जो १ चेतनरूप वस्तु | अथवा २ अचेतनरूप वस्तु | अथवा ३ चेतना चेतनरूप वस्तु है । उनका भूतकालमें, अथवा भविष्यकालमें, जो कारणरूप पदार्थ है, सोई " द्रव्य निक्षेप " का विषय है || क्योंकि कारण विना, कार्यकी उत्पत्ति होती ही नही है । परम उपयोगी जो, “ कारणवस्तु " है, वही कार्यभावको " प्राप्त होता है, उनको " द्रव्य निक्षेप " का विषय माना है सो निरर्थक स्वरूप कभी भी न होगा. । ॥ इति तृतीय “ द्रव्य निक्षेपका " लक्षणादि स्वरूप || ॥ अथ चतुर्थ " भाव निक्षेपका " लक्षणादि लिखते है ।। ॥ भावो विवक्षित क्रियाऽनुभूतियुक्तो वै समाख्यातः ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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