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________________ द्रव्य निक्षेपका लक्षणं. ___(५) इति श्लोकार्थः। तात्पर्य-जे जे नाम निक्षेपका लक्षणसें, सिद्ध स्वरूपकी वस्तुओ है, ते ते वस्तुओके गुणोंसें तो रहित, मात्र उन... के सदृश्य आकृति, अथवा असदृश्य आकृति, लेप्यादिक दश प्रकारमें करके, उस वस्तुको समजना, सो सो " स्थापना निक्षेप " रूपसें, मानी जाती है । जैसेंकि-तीर्थकरकी मूर्तियां, अथवा साधु आदिकी मूर्तियां, सदृश आकृतिसें होती है । और आवश्यकादिक क्रिया रूप वस्तुओं को जाननेके लिये, अक्षरोकी स्थापना, अथवा कायोत्सर्गका स्वरूप वाला साधु आदिकीभी स्थापना, किई जाती है, सो यह सर्व : " स्थापना निक्षेपका" विषय रूप समजना ।। २ ॥ ॥ इति दूसरा " स्थापना निक्षेपका " लक्षणादि स्वरूप ॥ " अब तिसरा " द्रव्य निक्षेपका " लक्षणादिक लिखते है ।। भूतस्य भाविनो वा, भावस्य हि कारणं तु यल्लोके ॥ तद् द्रव्यं तत्त्वज्ञैः, सचेतनाऽचेतनं कथितं ॥३॥ ॥ अर्थः-इस लोकमें जो अतीत, और अनागत कालकी भाव पर्यायका, *कारणरूप वस्तु है, उस वस्तुको" द्रव्य" स्व. रुपसे कहते है, सो द्रव्यरूप वस्तु, एक चेतनरूप, दूसरा अचेतन रूप, और तिसरा चेतनाऽचेतनरूप, ऐसे तीन प्रकारकी तत्त्वके जान पुरुषोंने कही है ॥ ॥ इति श्लोकार्थः ॥ ___* जिसके बिना " भाववस्तु " भिन्नस्वरूप नही दिखती है, और नेत्र श्रवणादिकसे, जिसके स्वरुपका बोध, मनको होता है, सोई " द्रव्य निक्षेप " का विषय है ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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