________________
मतिमा स्थापन विषये-स्तवन/मा. (१५) नाम जपतां जिनसणुंरे, रसना ज्यूं निरमल थाय । . यूं जिनविंच जुहारता, निश्चे सुरे हुये निरमल कायकि ॥ सु०८ साधु अ श्रावक तणारे, कह्या धर्म दोई प्रकार । श्री जिनवर अने गणधरे,सर्व विरतीरे देश विरती विचारकि । सु०९ श्रावकने थावरतणीरे, न पलें दया लगार। सवा विश्वा पालें सही, ज्यू होवें बारह व्रत धारकि ॥ मु०१० वीश विश्वा पाले जतीरे, रहते निज आचार । सरसव मेरुने अंतरे, गृह धरमेरे साधु धरम संभारकि ।। सु०११ तिण कारण श्रावक भणीरे, समाकत प्राप्ति काज । पूजा श्री जिन बिंबनी, मुनि सेवारे बोली जिनराजा ।। सु० १२ पर्व दिवस पोसह कोरे, आवश्यक दुई वार। .... : अवसर सीपाइक करें,भोजन करेंरे जिन मुनीने जुहारकि। सु० १३ १ घर करसण व्यापरनेरे, भाष्यों छे आरंभ । ..... पूजा जिहां जिन विवनी,तिहां भाषीरे जिन भक्ति अदभकि । सु० १४ पुत्र कलत्र परिवारमेरे, सुद्ध न होय तप शील। दानयकी पूजाथकी, श्रावकरे थायें सुख लीलकि ॥ सु. १५ जिनवर बचन उथापीनेरे, निज मन कल्पना भेलि । ... जिन मूरति पूना तजे,ते जाणोरे मिथ्यातनी केलि कि ।। सु. १६ जिन मुनि सेवा कारणे, आरंभ जे इहां थाय । अल्प करम बहु निर्जरा,भगवती सूत्ररे भायें जिनराज कि ॥ सु. १७ सूत्र वचन जे ओलोरे, जे आणे संदेह। .. मिथ्या मतना उदयथी, भारी करमारे जाणो नर तेह कि ।। सु. १८ .
१ घर-खेती-व्यापारादिक स्वार्थ कार्यमा प्रवृति करता जे काई सूक्ष्मजीवोंनी विराधना थाय, तेनेज तीर्थकरोभे आरंभ कहेलो छे; बाकी जिनपूजाने तो भक्तिज कहेली छे,
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org