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(११) ॥ जिन प्रतिमान विषये ८ स्तवन ॥ . पूजा छे मुक्तिनो पंथ, नित नित भाषे इस भगवंत । ... सहि एक नरक बिना निरधार, प्रतिमा छे त्रिभुवनमां सार ॥६ सत्तर अठाणु आषाढी बीज, उज्जल कीधुं छे बोध बीज । ..: इम कहे उदय रतन उवज्जाय, प्रेमे पूजो प्रभुना पाय ॥ .. ७.
इति जिन प्रतिमा ७ स्तवन ॥ . जिन प्रतिमा विषये ८ स्तवनः॥ चेतउरे चित प्राणी, ए देशी ।। चरण नमुं श्री वीरनारे, धरि मन भाव अभंग। पामी जे जसु सेवथी, ज्ञान दर्शनरे चारित्र गुण चंगकि ॥ १। सुणज्योरे सु विचारी,तुम्हे तजि ज्योरे मन हूती शंककि, सु ए टेका जिन प्रतिमा जिन सारखीरे, भाषी श्री जिनराज । समकित धर चित्त सरदहें, भवजलधिरे तरवाने काज कि ॥ सु०२ जेहनुं नाम जपीये सदारे, धरीये जेहनी आण । मूरती तास उथापता, सहु करणारे थाई अपामणकि ॥ सु० ३ वंदें पूजें भाव सुरे, समकिती अरिहंत देव । तिम अरिहंतना विंबनी, मन सुद्धेरे नित सारे सेवकि ॥ सु० ४ १ नाम, २ ठवण, ३ द्रव्य, ४ भाव सुंरे, श्री अनुयोग दुवार । चार निक्षेपा जिन तणा,वंदें पूजेरे ध्यावें समकित धारफि असु०५ भाव पूजा कही साधुनेरे, श्रावकनें द्रव्य भाव । धर्म समकित जिन सेवमें, शिव सुखनोरे एही उपावकि. ॥ सु० ६ दान शील तप दोहिलोरे, अहनिशि ए नत्री थाय । भावें जिन विंब पूजता,भव भवनोरे सहु पातक जायकि । सु० ७
. १ एक नरक का स्थान छोडकरके, और सर्व जगें पर, शा. श्वते, और अशाश्वते, जिनेश्वर देवके विंच (प्रतिमा)बिराजमान हे उनका पाठभी जैन सिद्धांतोंमें जगें जगें पर विद्यमान पणे है।।
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