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नाम निक्षेपका लक्षण.
॥ अर्थ:-" नाम " है सो 'तीन' प्रकारसें रखा जाता है जो भाव वस्तुओंका (अर्थात् पदार्थोका) नाम चला आता है सो, प्रथम प्रकारका नाम है ।।१।। ते "नाम" अन्य वस्तुओं में स्थित होके, उनके पर्यायवाची दूसरे नामको नही जनावें सो, दूसरा प्रकारका 'नाम' है ॥ २॥ अपणी इछापूर्वक हरकोइ " नाम" रखलेना यह तिसरा प्रकारका " नाम" समजना ॥ ३ ॥ *
॥ तापर्य-विमानके अधिपतिओंमें "इंद्र" नामका, ही “निक्षेप" होता रहेगा, और पुरंदर, शचीपति, मघवा, आदि, पर्यायवाची नामकी प्रवृत्तिभी किई जावेगी ॥ जैसें कि,-ऋषभदेव, नाभि सुत, आदिनाथ, आदि प्रथम तीर्थकरमें, नामकी प्र. वृत्ति होती है । यह प्रथम प्रकारके नामका तात्पर्य ॥ १ ॥ यही पूर्वोक्त इंद्रादिक, ऋषभदेवादिक, नाम है सो, जब दूसरी वस्तुओंमें दाखल किये जावें तब, उनके पर्यायवाचक पुरंदरादिक, और नाभि सुतादिक, जो विशेष नाम है, उनकी प्रवृत्ति दूसरी वस्तुओंमें नहीं कि जावेगी। जसै कि-गूजरके पुत्रका नाम " इंद्र" दिया है, परंतु इस गूजरके पुत्रमें-शचीपति, पुरंदर, आदि जो इंद्रके विशेष नाम है, उनकी प्रवृत्ति नहीं किई जावेगी. ॥ ऐसें ही दूसरा ऋषभदेवके नामवाले पुरुषमें-आदिनाथ, नाभिसुत आदि पर्याय वाची, दूसरे नाम नही दिये जावेंगे। यह दूसरा प्रकारके नामका तात्पर्य ॥ २ ॥ अब तिसरा प्रकारका रखा हुवा, नाम है सो, व्या
* संकेतित नामका उच्चारण, जिस 'वस्तुके अभिप्रायसे किया, वह नाम श्रवण द्वारा होके, मनको जिस 'वस्तुका बोध करा देवे, सोइ नाम, तिस वस्तुके नामनिक्षेपका, विषय समजना. इसमें तीनो प्रकारके नामका समावेश होता है । ..
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