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________________ ( २ ) नाम निक्षेपका लक्षण. त्यंत हृदि नाथ मूर्त्ति रमला नो भावि किं किंमयी ॥२॥ ॥ अर्थः- हे भगवन् तुमेरी “ मूर्त्ति " क्या कर्पूरमय है ? अमृतका तेजरूप है ? क्या चूर्ण किया हुवा चंद्रका मंडलरूप है ? अथवा भद्रलक्ष्मीरूप है ? अथवा केवल आनंदरूप है ? वा कृपा. के रसमय है ? वा साधुकी मुद्रामय है ? एसी निर्मल मूर्ति मेरे हृदयमे क्या क्या रूपको धारण नही करती है ? अर्थात् सर्व प्रका रके जो जो उज्वल रूप पदार्थ है, उनकांही भावको, मेरे हृदय में प्रकाशितपणे हो रही है ॥ २ ॥ ॥ इति मंगला चरणं ॥ || अब इस ग्रंथ करनेका प्रयोजन || सत्यार्थ चंद्राऽर्थक नामधे यं, शस्त्रं जनानां न तु शास्त्रभावं ॥ इत्येव मत्वा मुनिनाऽमरेण, मुनिनाऽमरेण, क्लृप्ता समालोचन सामवार्त्ता १ || अर्थः- सत्यार्थ चंद्रोदय नामका " पुस्तक " शास्त्र रूप नही है, किंतु लोकोंको, केवल शस्त्ररूप ही है, वैशा समजकर "मुनि अमरविजयने " यह समालोचन करणे रूप, सम वार्त्ता की रचना, किई है ।। १ ।। ॥ प्रथम " चार निक्षेपका " लक्षण कहते है | || “ नाम निक्षेप" लक्षण || आर्याछंद || यद्वस्तुनोऽभिधानं, स्थित मन्यार्थे तदर्थ निरपेक्षं ॥ पर्यायानऽनभिधेयं च नाम याछिकं च तथा ॥ १ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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