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________________ हूंडकाईयांका संसारखाता. (९१) का-बोध, अरिहंत, भगवंत, का पाठ मात्रसे ही-कराया है । और ढूंढनीजीने भी-इस सूत्र पाठका अर्थ, जिनमूर्तिका ही करके दि. खाया है। और-जिन प्रतिमा जिन सारखी, ऐसा जो सिद्धांतोका लेख है, उनकी भी सिद्धि, ढूंढनीजीके लेखसे ही होती है । तो भी ढूंढनीजी तीर्थकरोकी, मूर्तिको पथ्थर, पहाड, लिखके, अवज्ञा करती हुई, और यक्षादिकोंकी मूर्तिको पूजाती हुई, आप ही ढूंढनीजी भव समुद्रमें डुबती हुई, और हमारे भोले ढूंढक श्रावक भाइयांको भी, भवसमुद्रमें लेजाती है ? । क्या इसका नाम संसार खाता मान्या है ? ॥ १६ ॥ ॥ फिर सत्यार्थ पृष्ट. १४३ में, जो पंचम स्वमका पाठ है, उस पाठसें-साधुओंको ही मूर्तिपूजाका निषेध किया गया है। उस मूर्तिपूजाका सर्वथा प्रकारसें-निषेध करके, पृष्ट. १४४ में मति कल्पनासें-मूर्तिपूजाके उपदेशकोंको,कुमार्गमें गेरनेवाले लिखे है॥१७ विचार-ढूंढनीजीने इस पंचम स्वमका पाठार्थमें, अपनी मति कल्पनासें-मूर्तिपूजाके उपदेशकोंको, कुमार्गमें-गेरनेवाले लिखे। ... परंतु सत्यार्थ पृष्ट. १२६ में वीरभगवानके परम श्रावकोंकी पाससें, तदन अयोग्यपणे, खास जो मिथ्यात्वी-पितर, भूतादिक है, उनोंकी मूर्तिपूजा षट् कायाका आरंभसे-कराती हुई, ते परम श्रावकोंको-कुमार्गमें गिरनेका, जूठा कलंक देक, ढूंढनी ही आप कुमागैमें पडती है ?। क्या उसका नाम संसार-खाता, मान्या है ? १७ . फिर. सत्यार्थ पृष्ट. १४६ में-साधुओंको मूर्तिपूजाका निषेध रूप, महा निशीथका पाठार्थमें, ढूंढनीजी जिन मूर्तिपूजक श्रावकोंको-पाषाणो पासकका, संबोधनसें-हास्य करती हुई, और अपनी मति कल्पनासे जिनमूर्तिपूजाके उपदेशकोंको, अनंत सं. सारी लिख मारे है ॥ १८ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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