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________________ ढूंढनीजीका-४ भाव निक्षेप. (७१) ( अर्थात्-पदार्थ, ) जिस जिस स्वरूपसें, मानी होगी, उस २ वस्तुके चारो निक्षेप भी, उसी ही भावकी, उत्पत्ति कराने वाले, होंगे। - जैसें कि-* शत्रु भावकी वस्तु, होंगी उनके चारो निक्षेप भी, शत्रु भावकी ही-उत्पत्ति, कराने वाले-होंगे। ___और-मित्र भावकी, बस्तु होंगी, उनके-चारो निक्षेप भी, मित्र भावकी ही-उत्पत्ति, कराने वाले होंगे। और जो कल्याण भावकी-वस्तु, होगी उनके चारो निक्षेप भी, कल्याण भावकी ही-उत्पत्ति, कराने वाले होंगे। . और परम कल्याण भावकी-वस्तु, होंगी, उनके-चारो नि. क्षेप भी, परम कल्याण-भावकी ही, उत्पत्ति-कराने वाले, होंगे। परंतु-उपयोग बिनाकी, निरर्थक स्वरूपकी-बस्तु न होंगी । इसी वास्ते सिद्धांतमें-१ नाम सच्चे । २ ठवण सच्चे । ३ दव सच्चे । ४ भाव सच्चे ॥ . कह कर-चार निक्षेपको, सत्य रूपसे ही, कहे हैं । इस . वास्ते ख्याल करनेका, यह है कि जो हम मिथ्यात्वी लोकोंकी तरी, तीर्थकरोंकी साथ-गुप्तपणे, हृदयमें-शत्रु भावको, धारण करते-होंगे, तब तो तीर्थकरोंका-त्रण निक्षेप, उपयोग बिनाके होके-हमारा कल्याकी प्राप्ति होन, बेसक निरर्थक रूपही-हो जायगे,और हमारा जन्म जीवतव्य भी-निरर्थक रूप ही हो जायगा। * देखो सत्यार्य पृष्ट १२ में-मित्रकी-मूर्तिको, देखके-प्रेम जागता है । लडपडे तो उसी ही-मूर्तिको, देखके-क्रोध, जागता है । विचार करोकि-हमारे ढूंढक भाईयो इस वखते तीर्थकर भगवानके-वैरी, बने हुये है या नहीं ? ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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