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________________ ( ७० ) ढूंढनीजीका - द्रव्य निक्षेप. परंतु हे भाई ढूंढक, ढूंढनी पावतीजीका, द्रव्यनिक्षेपसें- लाभ, या हानि, क्या तेरंको मान्य नहीं करना पडेगा ? | तो पिछे अपना उपादेय, वस्तु संबंधीका द्रव्यनिक्षेपभी निरर्थक पणे, कैसें मान्या जायगा ? जैसोंके भविष्य कालमे अमृत फ. लको देने वाला, कल्पवृक्षका - अंकुराको, पाणीसें सिचन करके उन की रक्षा कौन पुरुष, न करेगा ? | अथवा अमृतफलको देता हुवा, कल्पवृक्षका नारा होनेसें, किसका चित्तमें- दुःख, उत्पन्न न होगा ? | तेसही - तीर्थंकर भगवानकी, बालकरूप पूर्व अवस्थाकोभी, ह मारा कल्याणकी करनेवाली जानके, उनको भक्ति करने को हम क्यों न चाहेंगे ? | - और हमारा - सर्वस्वका नाश, मानते हुये, तीर्थकरों का मृतक शरीररूप अपर अवस्थाकीभी भक्ति करनेको, क्यों न चाहेंगे ? और उनके दुःखोसें दुःखित, सुखोंसें चित्तमें सुखीभी, क्यों न होगे ? | - - इस वास्ते तीर्थकरों का * द्रव्यनिक्षेपकोभी, सार्थकरूपही मा नते हैं । परंतु निरर्थक स्वरूपका, नहीं मानते है । यह निक्षेपके विषय में, ढूंढनीजी की -मतिकाही, विपर्यास हुवा इस वास्ते त्रण निक्षेपको, निरर्थक रूपसें, लिख दीखाती है ? | Jain Education International . *जब हमारे ढंढक भाईयो - द्रव्यनिक्षेप, निरर्थकड़ी कहते हैं, तो पिछे - दीक्षा लेने वालाका, और साधुके – मुडदाका, ठाठमाठसें-रघोडा, और दूशाला डालके, हजारो रूपैयाका - बिगाडा, किसवा करते हैं ? डाली वस्तुका - आदर, कौन करता है ? For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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