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________________ ढूँढनीजीका - द्रव्य निक्षेप, ( ६९ ) और वेश्या पार्वतीका द्रव्य निक्षेप, यह था कि कामविकारको जगाने वाली, भाव निक्षेपका विषयभूत योवनत्वकी - पूर्व अबस्थारूप बालिकामें था । अथवा अपर अवस्था मृतक रूपकी अवस्थामेंथा । उनके गुणोंका, वर्णन - श्रवण करता हुवा, और अपना-उपा देय वस्तुके संबंधपणे, मानता हुवा, सो कामी पुरुष, अपना लाभ या - हानिको भी, मानता रहाथा। - और ढूंढनी पार्वतीजीका द्रव्य निक्षेप, यह था कि -दीक्षा लेनेका भाव करके आई हुई, अपनी गुरुनीजीके पास पठन पाठनको करतीथी ते पूर्वकी अवस्थामें । अथवा जो ढूंढनी पार्वतीजी उपदेशादिक करती थी, और ग्रंथादिकोंकी रचना भी करतीथी, उनकी समाप्ति हुई सुनते है, ऐसी अपर अवस्थामें - द्रव्य निक्षेप, किया गया था ॥ G परंतु ते शिवभक्तने, और ते कामी पुरुषने तो, ढूंढनी पार्वतीजीका - इस द्रव्य निक्षेपका विषयको ज्ञेय वस्तुके संबंधपणे मानके, तो अपना लाभ, और नतो अपनी- हानीको, कुछ मानाथा ।। परंतु हे भाई ढूंढक, में तेरेको, पूछता हूं कि - १ शिव पार्वतीजी । २ वेश्या पार्वती । और ३ ढूंढनी पार्वतीजी । यह तीनों पार्वतीका - द्रव्य निक्षेपकी, वार्त्ताको श्रवण करके, किस पार्वdiet द्रव्य निक्षेपका विषय से - तूं अपना लाभ, और अपनी हानिको, मानेगा ॥ क्योंकि वेश्यापार्वतीका द्रव्यनिक्षेपसें - लाभ, कामी पुरुषको ही होनेवालाथा | और हानिभी, उसी कोही हुई है । 1 और शिवपार्वतीजीका, द्रव्यनिक्षेपसें लाभ, शिवभक्तकोही प्राप्त होनेवालाथा | और हानिभी, उसीकोही हुई है | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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