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________________ साध्या जोमा व्यश्लीजीको पनि अनार की हर छ । (३६) २ र ३० को ॥ दोनों कोन्फरनसको-सूचना ॥ ॥ पाठक गण! यह-नेत्रांजन पुस्तक, तीर्थंकरोंका मूलतवोंको, सत्यपणे प्रगट करनेके लिये, प्रेसमें छप रहाथा जब, बंध करानेके वास्ते, भंपकी हिमायती करती हुई ढूंढक कोन्फरन्स, मूर्तिपूजक कोन्फरन्सको-अतिप्रेरणा कर रहीथी । ओर दोनों कोन्फरन्सके अनेक पत्रो, हमारी उपर आते रहेथे ! और हम योग्य उत्तर लिखते रहेथे । ओर-जैन समाचार, दृढक पत्रभी, संपकी हिमायती करता हुवा, वारंवार पोकार उठाता रहाथा । सो बहुतेक लोकोंको मालूम होनसें, सब लेख हम दरज नहीं करते है। परंतु सत्य संपकी, हिमायत करने वालो-दोनों कोन्फरन्सको, हमारी यह सूचना हैकि-ढूंढकोंके पुस्तकका, और हमारी तरफसें बहार पडे हुये दोनों पुस्तकका, मुकाबलाके साथ, दो दो मध्यस्थ पंडितोंको बिठाके, निःपक्षपातसें-निर्णय करा लेवें । और-तीर्थकर, गणधरादिक, सर्व आचार्योंकी-जूठी निंदा करने वालोंको, योग्य शासन करें । अगर जो ऐसा न करेंगे तो, कोन्फरन्सो हैसो सत्य संपकी हिमायती करने वाली है ऐसा, कोईभी न मानेंगे। किंतुतीर्थकर, गणधरादिक, सर्व महा पुरुषोंकी निंदा करने वालोंकी ही-हिमायत करनेवाली है । ऐसा खटका, सबके दिलमें, बना ही रहगा ॥ इत्यलं विस्तरेण ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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