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निक्षेपमें दूसरा प्रकार से समजूति. (१३) संबंधी वस्तुका दर्शनसें, पिछे अनेक प्रकारकी मनमें तरांगां उत्पन्न होके, जब वही कार्य स्वरूप, भाव वस्तुका बोध, आत्माको करादेवें तब सो कारणरूप द्रव्य वस्तु-द्रव्य निक्षेप, समजना ।। ३ ___अब वहीतोहै-१नाम, और वहीतोहै-२आकृति, (मूर्ति)।
और पूर्वकालमें-श्रावण कियेहुये गुण दोषादिक स्वरूपकी ३ 'वस्तु' (अर्थात् दृश्य पदार्थ) श्रवणद्वारा, अथवा नयनद्वारा, मनका विचित्र परिणामको प्राप्त करके-साक्षात्पणे आत्माको-बोध, करादेवे, तब ते साक्षात् स्वरूप भावकी वस्तुको-भाव निक्षेप, समजना. ४॥
इति दूसरा प्रकारसें-लक्षणद्वारा-चार निक्षेपका स्वरूपकीसमजूति ॥
सूचना-इसमें सूचना यह है कि-यह चार निक्षेपके विषयमें-जे जे हमने विशेष प्रकारसे, समजूति करके दिखाई है, उसमें किसीभी स्थानमें, किसीभी प्रकारका, याकचित् फरक मालूम होजावें, तब हमारा विचारको त्याग करके, लक्षणकारके लक्षणसें ही-उसवस्तुका-चार निक्षेप, करनेका निर्वाह करलेना, परंतु हमारा दर्शाया हुवा विचारपर, आग्रह नही करना । महापुरुषोंकी गंभीरताको, हम नहीं पुहच सकतेहै ॥ इति ।
अव चार निक्षेपके विषयम-सार्थकता निरर्थकताका,
विचार, लिखते है ॥ पाठकगण ? दूनीयामें जितनी-वस्तु, भिन्न भिन्न है [ अर्थात् भिन्न भिन्न पदार्थ है ] सो-अपना नाम १ । अपनी आकृति २।
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