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________________ (१२) निक्षेपमें दूसरा प्रकारसें-समजुती. जैन शास्त्रकारोने-चार निक्षेपके स्वरूपसे-वर्णन किये है । इनका विशेष विचार गुरु गमतासें-समजनेकी जरुर है ॥ ॥ इति चार निक्षेपकी समजूति ॥ चार निक्षेपके विषय में दूसरा प्रकारकी-समजति लक्षण द्वारा करा देते है. . जिस वस्तुका-बोध, जिस १वचनसें,२आकृतिसें,३ गुणादिकके स्वरूपसे, श्रवण, नयन, मनः द्वारा, आत्माको होजावे, सो नामादिक-चारों निक्षेप, उसी वस्तुकाही है, वैसा समजना. उदाहरण-जैसेकि वर्ण समुदायरूप-नाम मात्रका, उच्चारण के शब्दो, श्रवण द्वारा हृदयमें प्रवेश होके, और पिछे मनकी तरंगांको उत्पन्न करके, जो-नाम, जिस वस्तुका बोध,आत्माको करादेवे,सो नाम उस वस्तुका-नाम निक्षेप, समजना १॥ ___ अब जो आकृति अनाकृतिके स्वरूपसे (अर्थात् मूत्ति अमूर्ति के स्वरूपसे) नेत्रद्वारा होके, और पिछे अनेक प्रकारकी मनकी तरंगांको उत्पन्न करके, जिसवस्तुका बोध, आत्माको होजावे सो आकृति । अनाकृति रूप, वस्तुकी स्थापना-स्थापना निक्षेप, स. मजना ॥२ ___ अब जो वस्तु-पूर्वकालमें, अथवा अपर कालमें, कारण स्वरूपमें रही हुईहै, उनका गुण दोषादिक श्रवणसे, अथवा तिनके १ ज्ञान, दर्शन, चारित्रात्मक 'वस्तु' (अर्थात् पदार्थ) अमूर्त स्वरूपकेभी है तोभी संकेतीत अक्षरोसें-नेत्रद्वाराहि, बोधके देनेवा. ले होते है ! सोभी 'स्थापना निक्षेप के स्वरूपकही है. ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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