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(१०) लक्षण कारके मतसें-चार निक्षेपका स्वरुप.
जीने, इस अनुयोगद्वार सूत्रके पिछे, बहुत कालतक ही परिश्रम उठाया होगा, परंतु सद्गुरुके वचनरूप-तात्पर्य रसायन मिलाये विना, वृथा ही क्लेश उठाया है । परंतु हमारे ढूंढक भाइयोंकी अनुकंपाके लिये, जो हमने परम सद्गुरु श्री मदानंद विजय सूरीश्वरजी महाराजके-वचनरूप रसायन कुंपिकासें, प्राप्त किया है रसायनका बुंद, सो उनोंके मनरूप लोह रसको, सुवर्णरूप बना देनेकी इछासें, जो-चार महा अनुयोग है, उसमेंसें केवल एक निक्षेप नामका ही अनुयोगकी, सामान्य मात्रसें व्याख्या भी-महापुरुषोंको आश्रित होके ही, में फिर भी करनेकी प्रवृत्ति करता हु, सो सज्जन पुरुषों-अवश्य ही योग्यऽयोग्यका विचार करेंगे।
॥ इति जैन सिद्धांत स्वरूपका विचार ।।
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॥ सूत्र, और लक्षण कारके मतसें-चार निक्षेपका लक्षण ।
जो क्रिया गुण वाचक-वर्ण, समुदाय है, उस वर्ण समुदाय मात्रका, अथवा अपनी इछा पूर्वक वर्ण समुदायका, जीव, अ. जीव, आदि वस्तुमें-आरोप करना, अर्थात्-संज्ञा करलेनी, उसका नाम-नाम निक्षेप है ?।
और उसीही-नामका निक्षेपबाली, जीवादिक वस्तुकी,सूत्रका रने दिखाई हुई दश प्रकारकी वस्तुमेंसे, किसीभी प्रकारको वस्तुसे आकृति, अनाकृतिके स्वरूपसें, स्थापित करना, उसका नाम-स्था पना निक्षेप है २ ॥ और उसीही-नामका निक्षेपवाली वस्तुका, पूकालमें, अथवा अपरकालमें, जो कारणरूप द्रव्यहै, उसमेंही (अ. र्थात् कारण रूप द्रव्यमें ही) उसका आरोप करना, उसका नाम: द्रव्य निक्षेप है ३ ॥ उसीही नामका निक्षेप वाली जीवादिक वस्तु
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