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(८) चार निक्षेपका, ढूँढनीजीको-विपरीतज्ञान. कहे है ॥ यथा-नाम निक्षेप १ । स्थापना निक्षेप २ । द्रव्य निक्षेप ३। भाव निक्षेप ४ ॥ अस्यार्थः-नाम निक्षेप-सो, वस्तुका-आकार और गुण रहित-नाम सो-नामनिक्षेप १ ॥ स्थापना निभेप-सोवस्तुका-आकार, और नाम सहित, गुण रहित सो-स्थापना निक्षेप २॥ व्यनिक्षेप-सो-वस्तुका वर्तमान गुण रहित, अतीत अथवा अनागत गुण सहित, और आकार नामभी सहित, सो-द्रव्य निक्षेप ३ ॥ भाव निक्षेप-सो-वस्तु का नाम, आकार, और वर्तमान गुण सहित, सो-भावनिक्षेप ४॥
॥ यह चार निक्षेपका लक्षण-ढुंढनी पार्वतीजीने-सिद्धांतसे निरपेक्ष होके, सत्यार्थ चंद्रोदय पृष्ट पहिलेमेंहि, लिख दिखाया है, सो इहांपर फिरभी-पाठकगणको विचार करनेको, लिख दिखाया है।
. . ॥इति ढूंढनीजीका लेख ॥
पाठकगण ? हम ढूंढनीजीके-निक्षेपके विषयमें, बहुत कुछ कह करके भी आये है, तो भी इहांपर किंचित् सूचना करके दिखावते है ॥
यह ढूंढनीजी-सिद्धांतसें-वस्तुका-१ नाम निक्षेप । २ स्थापना निक्षेप । ३ द्रव्य निक्षेप । और ४ भाव निक्षेप । अलग अ. लग लिखती है । और अपना किया हुवा-नाम निक्षेपके अर्थमें-वस्सुको-आकार, और गुण रहितपणा, दिखलाती है, परंतु आकार, और गुण विनाकी, वस्तुही कैसे होगी ? १ ॥
और वस्तुका--स्थापना निक्षेपके अर्थमें--वस्तुको--गुण रहितपणा कहकर, नाम निक्षेपको भी--गूसडती है, सो यह कैसे बनेगा ? २ ॥
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