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मूढताका त्यागीसों कल्याणकापात्र. ( २५१ )
करके, जिनमतिमा के बदले में - अवस्तुरूप काम देवकी, स्थापना रूप- मूर्ति, वरकी प्राप्ति करानेको - तत्पर हुई ? सो ढूंढनीजीने, भव्य जीवोंके उपर दया कीई है कि दया मूढता ? || ३ ||
हमारा इस लेख के अनुसार सें, सतावीसें कलमकी साथ, ढूंढनीजीकी - दया, और दया मूढताका विचार, करते चले जाना ॥ मैं अवज्यादा कुछ नहीं लिखता हुं, मात्र इतनाही कहता हुं कि-महा पुरुषों की अवज्ञा करनेसें, न तो इसलोक में कल्याणके पात्र बनोगे, और न तो परलोक में भी कल्याणके पात्र बनोंगे, यह बात तो निसंशय पणे सेंही सिद्ध है ।। इत्यलं अतिविस्तरेण. ॥ इति काव्यका तात्पर्यार्थ |
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