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मूढताका त्यागीसो कल्याणकापात्र.
काय में, तुमको तुमेरी दया माताका ध्यान भी नहीं आता है । मात्र तीर्थंकर देवकी भक्तिके वखतमें ही, तुमेरी जूठी कल्पी हुई - दया माता- तुमको आके सताती है, और वीतराग देवकी भक्ति से ig करती है । और तीर्थकरों की भक्तिके सिवाय दूसरी जगेंपर, 1 ते जूठी कल्ली हुई तुमेरी दया माता- तुमको कुछ भी आके कहती ही नहीं है. ॥
तो इहां पर थोडासा विचार करोकि, यह दया मूढता कही जावेगी कि, वास्तविक प्रकारकी दया कही जावेगी ? | हमने जो शास्त्रों में अनेक प्रकारका, मृढताके भेद देखे है, उसमेंका यह भी एक भेद ही मालूम होता है । नहीं तो इतना विपरीतपणा - जग जगपर, हमारे ढूंढकभाइयांका क्यों आता ? । अर्थात् कबी भी नहीं आता । यह तो कोइ - एक प्रकारका, अघोर कर्मकी ही विचित्रता, मालूम होती है । अगर जो ऐसा न होता तो तीर्थंकरों की परम शांत मूर्त्तियांकी पूजाके स्थानमें, परम श्रावकों की पास - पि तर, दादेयां, भूत, यक्षादिकोंकी - भयंकर मूर्त्तियां, दररोज पूजानेको- क्यों तत्पर होते ? ॥
और यह मूढता, कोई ऐसी महा पापिनी है कि, जिसने पूर्व कालमें भी अनेक प्रकारसें, अनेक प्राणिओंको, फसाये हैं । और इस लोक परलोकका स्वार्थसें भी, भ्रष्ट ही किये हैं । परंतु सारा सारका - विचार करने को, अवकाश नहीं दिया है.
11 जैसेकि - दुहा. सारासार विचार विन, भोग इंद्रि में लुद्ध । कागदकी हथनी विषें, फर्से हाथी हुय बुद्ध ॥ १ ॥ सारासार विचार विन, रसन विषयमें मूढ ।
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