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तात्पर्य प्रकाशक दुहा बावनी. (२२९) है। और इस विवाह चूलिया सूत्रका पाठमें दिखाई हुई, यक्ष, भूतादिकोंकी-प्रतिमाओंको, वंदन करनेका, और पूजन करनेकाआदेश, वीर भगवानने नहीं दिखाया है । तोभी ढूंढनीजी अपने ग्रंथमें जगें जगेपर उनोंकी प्रतिमाओंका, वंदन, और पूजन भी, करनेकी सिद्धि करके दिखलाती है । इतना ही मात्र नहीं, परंतु जैनके-सर्व आचार्यको, और जैनके-सर्व ग्रंथोंकों भी, मथ्था खुल्ला करके निंदती है ? । और ढूंढनीजी अपने आप जैन धर्मसें भ्रष्ट होती हुई, दूसरे भव्य प्राणियांको भी, जैन धर्मसें भ्रष्ट करनेकाउद्यम कर रही है । और अपना साधीपणा भी दिखाती है ? । एसें मूढोंको, हम कहांतक शिक्षा देते रहेंगे ? । देखो इनकी समीक्षा. नेत्रां. १६२ से १६७ तक ॥ ४८ ॥ पडिसोयगामी साधु है, द्रव्य रहित विशुद्ध । फलफूलादिक द्रव्यसें, पूजा सूत्र विरुध ॥ ४९॥ ___ तात्पर्य-संसारिक सुखोसे विमुख, सो पडिसोय गामी, साधु पुरुषो कहें जाते है। सो सर्व प्रकारका द्रव्य से रहित होनसें, उनों. की-फलफूलादिक व्यास, द्रव्य पूजा करनी सो सूत्र में विरुद्ध है। क्योंकि-द्रव्य रहित पुरुषोंकों, द्रव्य पूजा करनीसो, कबीभी उचित न गीनीजायगी । इसवास्ते-साधु पुरुषोंको, तीर्थंकरोंकी जो दूसरी-भाव पूजा है, सोही करनी उचित है। इसवातका परमार्थको समजे विना, गुरु बिनाकी ढूंढनीजी, सर्वथा प्रकारसें-जिनप्रतिमाका पूजनको निषेधकरके, वीरभगवानके-परम श्रावकोंकोंभी, पितर, दादेयां, भूत, यक्षादिक-मिथ्यात्वी देवताओंकी, क्रूर मूर्तियां-पू. जानेको, तत्पर होती है ? । ओर द्रौपदी श्राविका की पास, कामदेवकी-जड मूर्ति, पूजानेको. तत्पर होती है ? । परंतु इतनाभी वि.
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