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________________ तात्पर्य प्रकाशक दुहा बावनी. || अथ ग्रंथका तात्पर्य प्रकाशक दुहा बावनी ।। लिख्यो लखण निखेपको, फिर लिख्यो है पाठ । ढूंढने उस पाठ, किइ हैं नाठा नाठ ॥ १ ॥ ( २०१ ) 1 1 तात्पर्य- हमने जो यह - नेत्रांजन ग्रंथ, बनाया है, उसमें प्रथम मंगलाचरण लिखा है । और ग्रंथ करनेका प्रयोजन लिखके पिछे पृष्ट. २ से १४ तक चार निक्षेपका लक्षणके - चार श्लोक, लिखे है । पिछे पृष्ट. १७ से २६ तक — श्री अनुयोगद्वार सूत्रका पाठ, लिखा है | पिछे पृष्ट २६ से ३० तक ढूंढनीजीके तरफका-लक्षण, और त्रुटक सूत्रका पाठ, लिखा है ॥ १ ॥ अरस परस के मेलसें, किई समीक्षासार । जूठ कदाग्रह छोडके, चतुर करोनि विचार ॥ २ ॥ तात्पर्य – ढूंढनीजीका लेख, और सिद्धांतकारोंका लेख, इन दोनोंका अरस परस के मेल से - प्र. ३१ से ४१ तक -चार नि क्षेपके विषय में, विचार करके दिखलाया है । उसका विचार - हे चतुर पुरुषो, तुम अपने आप करके देखो, तुमको भी यथा योग्य मालूम हो जायगा ॥ २ ॥ चार निखेप हि सूत्र में, कहें ढूंढनी आठ । केवल किई कुतर्क हैं, नहीं सूत्रमें पाठ ॥ ३ ॥ तात्पर्य - एकैक वस्तु में, चार चार निक्षेप, सामान्यपणे सें क रनेका, सिद्धांत कारोंने कहा है, परंतु उसका बिना, ढूंढनीजीने स्व कल्पनायें, दो दो विभाग परमार्थको - समजे करके - आठ वि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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