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________________ ( १६० ) महा निशीथ सूत्र पाठका विचार. इस वास्ते यह गंधमालादिसें, मूर्त्तिकी पूजा करनी साधुओं को उचित नहीं समजनी. - 5 पाठक वर्ग ! देखिये - इस सूत्र पाठसे - श्रावक वर्गकी पूजाकी सिद्धि हुइ के निषेध हुवा ? जो कभी श्रावक वर्गकी पूजाका-निषेध करना होता तो, सर्व सावयका व्रतवालोकोही क्यों ग्रहण करते, ? और शुभाशुभ कर्म प्रकृतिका -बंध है सो, साधुओं कोही इच्छित नही है, क्योंकि शुभ और अशुभ, यह दोनों प्रकारकी कर्म प्रकृतियांका नाश करनेकोही साधु उद्यत हुवा है, इस वास्तेगंध, मालादिकसे, पूजाका अधिकारी - साधु नहीं बन सकता है ॥ और गृहस्थ हैं सो-छकाय जीवोंका आरंभही सदा रहा हुवा है, इसकारण से - सदा अशुभ बंधन कोही बांध रहा है, उन श्रावकोंको - जिन मूर्ति पूजनसे बहुत प्रकारकी - शुभ कर्मकी प्राप्ति करने काही मार्ग योग्य है। क्यों कि इस जिन पूजासें शुभ कर्मकाही बंध अधिक होता है, इस वास्तेही सूत्रमें - प्रथम बहुत शुभ पदको रखके, पिछे से अशुभ पदको ग्रहण किया है। और जो गृहस्थाश्रममें रह कर केजिन मूर्ति पूजन का त्याग करता है, सो दो सर्वथा प्रकारसे मलीन रूप जो कुछ वीतराग देवकी भक्ति करने से - शुभ कर्मकी प्राप्ति हुवा, होनेवालीथी, उसीकाही त्याग करता है | और साधुओको-- पुष्यादिक पूजन करनेसे, जितना कर्मका बंध, अर्थात् संसारका भ्रमण रूप होता है, उतनीही श्रावक वर्गको, मूर्त्ति पूजाकी -अवज्ञा करनेसेही कर्म बंधकी अधिकता होगी । क्योंकि श्रावकका - धर्म, और साधुका धर्म, यह दोनों - भिन्न भिन्न प्रकारके हैं. । - ● 9 जैसे कि धर्मके स्थानक बंधाने, समरावने, मृतक साधुको गत "" करना, साधु वृत्ति ग्रहण करनेवालेका - महोत्सव करना, साधर्मीक भाईयांका- खान पान से आदर करना इत्यादि अनेक प्रकार के गृ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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