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महानिशीथ सूत्र पाठका विचार.
( ११७ ) व्रत भंग होने से तीर्थंकरजी की आज्ञा उलंघन होय, आज्ञा उलंघ नसे, उलटे मार्ग के जाने से, सुमार्ग से विमुख होय, उलटे मार्गके जा
से, सुमार्ग विमुख होनेसे, महा आसातना बढे, तिससे अनंत संसारी होय । इस अर्थ करके गौतम ऐसा कहता हूं कि, तुम पूर्वोक्त कथनको सत्य नहीं जानना, भला नहीं जानना, इति । अब कहो पाषाणोपासको - मूर्तिपूजा के निषेध करनेमें, इस पाठमें कुछ कसर - भी छोड़ी है जिसके - उपदेशकोंकोभी, अनंत संसारी कह दिया है ।
समीक्षा - पाठक वर्ग ! हम यहांतक जितना लिखान करके आये, उसमें अनेक प्रकारकी अशुद्धियां भी देखते आये, परंतु केबल तात्पर्य तरफ लक्ष देके, कुयुक्तियांकाही विचार किया है, परंतु इस जगोपर सूत्रका पाठ, और अर्थ, प्रथमसेही बेढंगा देखके, विचार करना पडता है सोभी तात्पर्यकेही लिये करके दिखाता हूं, परंतु दोष दृष्टिसे विचार करनेको फुरसद नहीं लेता हूं.
तहाकिल अम्हे, इहां - अम्हे, जो पद है सो अस्मदूका बहु वचन है । तथाच हैमसूत्रं - [ अम्हा अम्हे - अम्हो मो वयं मे जसा . ] वृत्तिः -- अस्मदो जसा सह - एते षडादेशा भवंति ॥ प्राकृत व्याकरणका तृतीय पादे, सूत्र १०६ नंबरका है || अब इस कर्त्ता की क्रियाभी बहु वचनमेंही होनी चाहिये सो-करेमि, एक वचन रूपसे है, क्योंकि - अस्मद् प्रयोगका वह वचनमें क रेमो, क्रिया होवें - तबही वाक्यार्थ हो सकता है । इस वास्तेतित्थुपणंकरेमो, ऐसा पाठकी जरूरी है, क्योंकि अम्हे, यह कती बहु वचन रूप होने से, इनकी क्रियाभी बहु वचन रूप-करेमो, ही होनी चाहिये । तो अब सूत्रार्थसे जो संबंध
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१ तथाचसूत्रं --- तृतीयस्य मो, मु, माः ॥ त्यादीनां परस्मैपदा त्मने पदानां तृतीयस्य त्रयस्य संबंधिनो, बहुषु वर्त्तमानस्य वचनस्य
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