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कमबलि कम्मा' में विचार.
( १३७ )
नी पणाका एक चिन्हही, प्रगट करती है, क्यों कि साधुको मूर्ति पूजनेका अधिकारी ही, शास्त्रकारने नही दिखाया है, तो पिछेसाधुको पूजनेकी विधि, और पूजनका फल, किस वास्ते लिखेंगे । हां विषेशमें, इतना जरूर है कि साधु, और श्रावक मंदिर हुये, मंदिर में दर्शन करनेको जावे नही तो, उनको जरुर ही - प्रायछित, होता है, वैसा - श्री महाकल्प सूत्रमें लिखा है-यथा
सेभयवं, तहारूवं समणं वा, माहणं वा चेइयघरे-- गछेज्जा ? हंता गोयमा, दिणे दिणे - - गछेज्जा, सेभयवं जस्स दिणे-ण गछेज्जा, तओकिं पायच्छित्तं हवेज्जा ? गोयमा पमायं पडुच्च तहारूवं समणं वा, माहणंवा, जो जिणघरं न गच्छेज्जा, तओ छठं, अहबा दुवालसमं, पायछित्तं हवेज्जा. इत्यादि ॥
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अर्थ हे भगवन् ! तथा रूप श्रमण ( अर्थात् श्रावक ) अथवा माह--तपस्वी, चैत्य घर, यानि जिनमंदिर जावे?, । भगवंत कहते है, हे गौतम! रोज रोज अर्थात हमेशां जावे. फिर गौतम स्वामी पुछते है. हे भगवन् ! जिस दिन-न जावे तो उस दिन क्या प्रायवित्त होवे ! भगवंत कहते है, है गौतम ! प्रमादके वशसे तथा रूपश्राक्क, अथवा तपस्वी, जो जिनगृहे न जावे तो छह, अर्थात् बेला, ( दो उपवास ) अथवा पांच उपवासका प्रायश्चित्त होवे. ॥ वैसाही श्रावकके, पोषध विषयमेंभी, सविस्तर प्रायश्चित्तका पाठ है सो विशेष देखना होवेसो. नवीन छपा हुवा सम्यक्क शल्योद्धार पृष्ट. १९७ से देखलेवे ॥ इसवास्ते साधुकी पूजन विधि आदिका, लेख ही तेरा विचारशून्यपणेका है, किस वास्ते विपरीतपणे जूठी तर्कों करती है ? ॥
॥ इति कयवलि कम्मा-में, कुतर्कोंका विचार ||
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