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(१२४) चैत्य शब्दका-विचार. ... अब तीसरा श्लोक-दूसरे पादमें-'चेइ' शब्द निरर्थक । और तिसरे पादमें-सातमा अक्षर इस्व चाहिये, उहां दीर्घ रखा है । चौथे पादमें-विनउ, नीचउ, निरर्थक, संस्कृतसे सिद्ध होता ही नहीं है, और नतो विभक्ति भी कोई रखी है, और अक्षर भी सात ही है ॥ . ॥ अब चौथा श्लोक-प्रथम पादमें-अक्षर ही सात है, पंचम हस्त्र चाहिये वहां दीर्घ रखा है । दूसरे पादमें-चेई, शब्दही संस्क तमें सिद्ध नहीं होता है । तिसरे पादमें-छठा अक्षर दीर्घ चाहिये वहां -हस्वलिखा है । और चौथा पादमेंतो-'चेई' शब्दही निरर्थक, है। जव वाचक रूप शब्दही न रहा तब " वाच्य" पदार्थकी भी सिद्धि क्या होने वाली है, इसवास्ते जहां जहां " चेइ " शब्द रखा है वहां सर्वथा प्रकारसे निरर्थकपणा समजनेका है ॥ ___ अब पंचम श्लोक-प्रथम पादमैं-पंचम अक्षर हस्व चाहिये दीर्घ रखा है । और दूसरे पादमे-'चेइ' शब्दका ही नीरर्थकपणा है। तिसरे पादमे-अक्षरही ८ केजगे सात है, सिद्धि ही क्या करेंगे ? । चौथापादमें-अक्षर भी सात है, और 'ई' शब्दभी निरर्थक होनेसे सभी निरर्थकपणा है. ॥
॥ अब छठा श्लोक, प्रथम पादमें-अक्षरही ८ केस्थान में, सात हीहै । दूसरे पादमें-'इ' शब्दही निरर्थक है, वाचक नही तो वा. च्यकी सिद्धि क्या होनी है ?। तिसरे पादमें-अक्षरही सात है सिद्धि ही क्या करेंगे, और 'विज्ञान' पदभी विभक्ति विनाका है । चौ. थापाद-चेइ, शब्दसेही सर्वथा निरर्थक है. ॥
॥ अब सातमा श्लोक-आधाही है, प्रथम पादमे-'चेई' भन्द हि निरर्थक रूप है तो आगे सिद्धि किस बातकी करेंगे।
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