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नदीवरद्वीप-शाश्वती प्रतिमाओ. (११७) ॥अब नंदीश्वरद्वीपे-जंघाचार, गयेका, विचार ।। ढूंढनी-पृष्ट. १०२ ओ. २ सें-ठाणांगजी-सूत्रमें तथा जीवाभिगम-सूत्रमें-नंदिश्वर द्वीपका, तथा पर्वतोंकी रचनाका, विशेष वर्णन-भगवंतने, किया है, और यहां-शाश्वती मूर्ति, मंदिरोंकाकथन भी है,परंतु वहां मूर्तिको-पडिमा नामसेही,लिखा है इत्यादि। ___ओ. ८ सें. और भगवतीजीमें--जंघा चारणके, अधिकारमेंचेइयाइं बंद ऐसा-पाठ लिखा है । इससे निश्चय हुआ कि-जंघा चारणने-मूर्ति, नहीं पूजी, अर्थात्--वंदना, नमस्कार, नहीकरी यदि करीहोती तो एसा पाठहोता कि-जिनपडिमाओ, वंदइनमस्सइता, सिद्ध हुवा कि-भगवंतके ज्ञानकी, स्तुतिकरी । अर्थात् धन्य है केवल ज्ञानकी शक्ति, जिसमें सर्व पदार्थ, प्रत्यक्ष है ॥ यथा सूत्रं पृष्ट. १०३ से. .
जंघाचारस्सणं भंते-तिरियं, केवइए गइ विसए, पण्णता, गोयमा सेणं इतो-एगणं उप्पाएणं, रुगवरे दीवे-समोसरणं, करेइ, करेइत्ता, तह-चेइयाई, वंदइ, वंदइत्ता, ततो पडिनियत माणेवि-एगेणंउप्पाएणं, नंदीसरे दीवे-समोसरणं करेइ, तह-चेइयाई, बंदइ, वंदइत्ता, इह मागछइ, इह चेइयाई, वंदइ, इत्यादि ॥
ढूंढनीकाअर्थ-भगवन् जंघाचारण मुनिका-तिरछी गतिका विषय, कितना है, हे गौतम-एक पहिली छालमें रुचकवर दीपपर विश्राम करता है, तहां-( चेहय वंदइ ) अर्थात् पूर्वोक्त ज्ञानकी स्तुतिकरे अथवा इरिया वहींका-ध्यान करनका अर्थ भी, संभव
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