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________________ ( ११६) rest अर्थ प्रतिमा- नहीं. व्दका अर्थ-मंदिर, मूर्ति, रूप - तेरा लक्षमें क्या नही आया ? जो चेइय शब्दका अर्थ - ज्ञान, और ज्ञानवान्, यतिका कहकर - मंदिर, मूर्तिका अर्थको निषेध करती है ? और ज्ञाता, उपाशकदशा, विपाक सूत्रो में भी ( पुण्णभद्दचेइए) के पाठसे - मंदिर, मूर्तिका अर्थको ही जनता है, ॥ और तूं भी पृष्ठ ७३ में - पूर्णभद्र यक्षका - मं दिर, मूर्तिका अर्थपणे लिखकेही आई है । तो पीछे तेरा- जूठा बकवाद, मूढ विना- दूसरा कौन सुनेगा ? और ढूंढनी कहती है कि यदि कही, टीका, टब्बा कारोने- चेइय, शब्दका अर्थ- प्रतिमा, लिखा भी है, तो पूर्वाचार्याने पक्षपात सें, लिखा है । हे सुमतिनी ! तूं तेरा ढूंढकपणाको - सनातनपणेका तो दावाकरनेको जाती है, तो क्या आजतक तेरे ढूंढकोमेंसे, कोइ भी ढूंढक- टीका, अथवा टब्वार्थ, करनेको - जीवता, न रहाथा ? जो तेरेंको उनका एक भी प्रमाण, हाथमें न आया ? । जिस आचार्योंका टीका, टव्वार्थ, वाचके-गुजारा चलाती है. उनकोही निंदती है ? तुमेरे जैसे मंद बुद्धिवाले कौन होंगे कि - जिसडालपर बैठना, उसीकोही-काटना, और जिसपात्र में - जिमना ( अर्थात् खाना ) उसी पात्रमें - मूतना, अब इससे अधिक मंद बुद्धिवाले दूसरे कहांसे मिलेंगे ? इस वास्ते जो - टीकाकरोने- अर्थ, किया है, सोई प्रमाणरूप सिद्ध है । परंतु तेरी स्त्री जातिका तुछपणेका किया हुवा अर्थ तो, कोई मूढ होगा सोइ मानेगा, परंतु सुज्ञ पुरुषो तो अवश्यही विचारकरेंगे और जो मूढपणे के दिन सो तो चलेगये, अबतो सुज्ञ पुरुषों का ही समयप्रचलित है, काकु फुकट फजेता, कराती है ? ॥ इति चैत्यका अर्थ - प्रतिमा नहीका विचार || Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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