SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ११४) द्रौपदीजीके-पाठमें-कुतकों. पूजी होगी ! अहो इस ढूढनीने ढूंढढूंढकर, काम देवकी-मूर्तिका, संवधार्थ तो खूबही निकाला । क्योंकि-द्रौपदीजीका जिनप्रतिमाके पूजनको, शाश्वती जिनप्रतिमाका सविस्तारसे पूजनकरनेवाला जो. सूरयाभदेव है उनकी भलामण, शास्त्रकारने-दीईहै, इससे, काम देवक-मंदिर, मूर्तिकाही, संबंध, यथार्थ निकलनेवाला होताहोगा ? परंतु वीतराग देवकी-मूर्ति पूजनका, संबंध-योग्य नही होताहोगा ? और नमोत्थुगं, का पाठभी, जो पढाहोगा, सोभी, काम देवकी मूर्तिके-आगेही, पढाहोगा ? क्योंकि, यह दूंढनी जब संसारमें होगी, तब इसीनेभी सब विधि-काम देवकी मूर्तिके आगे, किई होगी ? इसी वास्तही यह-संबंधार्थ, निकाल कर-दिखाती है ? दूसरे संसारसे अनभिज्ञ-आचार्योंकी, क्या ताकात कि-वैसा गूढ संबंधार्थ-हमको, निकालकर दिखादेवे ! यहतो ढूंढनीही ढूंढकर-निकाल सकतीहै, दूसरा क्यादिखा सकताहै ? ऐसा तदन विपरीत-लिखने वालोंके साथ, क्या हम ज्यादाबातकरेंगे? वाचकवर्ग आपही-समजलवंगे. ॥ इति द्रौपदीके विषयम-कुतकोंका विचार ॥ - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy