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द्रौपदीजीके-पाठ में-कुतकों........... ( १९३) तीहै । यह भी विशेष प्रकार-बताने के लिये, यह-उपमा, दीई सिद्ध होतीहै । परंतु वीतरागदेवकी मूर्तिके-निंदकोकी, सिद्धिके लिये, यह-सूर्याभ देवकी, उपमा नही दिई है। किसवास्ते जूठ की-सिद्धि करनेको तरफडती है ? | और दूंढनी कहतीहैकि-जैसे-देवते, जीतव्यवहारसे-मूर्ति, पूजते हैं, ऐसेही द्रोपदीने-संसार खातेमें, पू. जीहोगी। अब इसमें-पुछनेका, इतनाही है कि-शाश्वतीजिन प्रति. माका पूजन-देवताओंका, जो जीत व्यवहारसे-कहतीहै सो क्याअधम फलदाताहै कि-कोइ उत्तम फलका-दाताहै ?। तूंकहेंगीकिअधम फलदाताहै, तो पिछे शाश्वती जिनप्रतिमाकी-भक्तिके साथ, यह अधमफलदाता-व्यवहारका, संबंध ही क्या ? । और जो यह जीतव्यवहार, उत्तम-फलका, दाताहै. तोपिछे तुमेरे जैसे-विचार श्रून्य ते-दूसरे कौन होंगे कि-जो उत्तम आचारसे-भ्रष्ट करनेको, थोयी पोथीयोंको-प्रगट करवावे ? और जीतव्यवहार, जीतव्यवहार, शाश्वती जिनप्रतिमा-पूजनी, सोतो, जीतव्यवहार. यहजो तेरा बकवादहै, सोभी जिनप्रतिमा पूजनका नास्तिकपणाकी-सिद्धिके वास्ते, कभीभी न होगा, किंतु आस्तिकपणाकीही-सिद्धिका, दाताहै । और तूं जो-जीतव्यबहार कहकर, उसको-संसारखाता, कहतीहै सो तुमेरा क्या चिजरूप है ? * और संसार खाताका, जो तुमेरा-जगें जगे बकबाद, सुनने में आताहै, सो किस माननिक-सूत्रमें, लिखाहै, जो फुकट लोकोको-भ्रममें, गेर ते हो ? । और ढूंढनी कहतीहैकि-संबंधार्थ से काम देवका-मंदिर, मूर्ति, सं. भवहोता है, क्योंकि विवाहके वक्त, वरहेतु-काम देवकी-मूर्ति,
* हमारे ढूंढकोंमें-संसार खाता, जो-चलपडा है। उनकाकिंचित् स्वरूप, अवसर पाके, कोइ अलग भागमें-लिखके, दिखावेंगे॥
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