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द्रौपदीजीके- पाठ - कुतका.
॥ अव द्रौपदी के विषयमें- कुतकों का, विचार ॥
ढूंढनी - पृष्ट ९१ ओ. १ से - क्या जिनमंदिर के पूजने वालोंके घर --मद, मांसका - आहार, होता है, अपितु नहीं, तो सिद्ध हुवा कि- द्रौपदीने, जिनेश्वर का मंदिर, नहीं पूजा. ॥
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फिर पृष्ट. ९४ ओ. १५ से - बहुधा यह सुनने, और, देखमें भी आया है कि, अनुमानसे ७/७०० सैवर्षों के लिखितकी श्री ज्ञाता धर्मकथा, सूत्रको प्रती है, जिसमें इतनाही पाउहै, यथा-तणं सा दोवइ रायवर कन्ना, यावत् जिनघर मणु पविस इ २ त्ता, जिन परिमाणं - अच्चणं, करे इ २ ता ) बस इतनाही पाठहै । और नई प्रतियोंमें, विशेष करके तुमारे कहे मुजब पाउहै, ताते सिद्ध होता है कि मिलाया गया है. इत्यादि ।
फिर पृष्ट ९६ ओं. ३ सें--साबूती यह है कि प्रमाणिक सूत्रोंमें, तीर्थकर देवकी - मूर्ति पूजाका, पाठ नही आया । द्रौपदीने भी धर्म पक्षमें - मूर्ति नहीं पूजी || दूसरी साबूती - तुह्यारे माने हुये पाठ मेंसूरयाम देवकी - उपमा, दी है, परंतु श्राविकाको श्राविकाकी - उपमा, नदी. ॥
फिर पृष्ट ९७ ओ. १ से - किसी श्रावक, श्राविकाने - मूर्ति, पूजी होती तो उपमा देते ॥ जैसें-देवते, पूर्वोक्त जीत व्यवहार सेंमूर्ति, पूजते है । ऐसे ही - द्रौपदीने, संसार खाते मे - पूजीहोगी ||
फिर पृष्ट ९८ ओ. ३ सें - यहां संबंध अर्थसे - जिनप्रतिमाका अर्थ - कामदेवका - मंदिर, मूर्ति संभव होता है |
ओ १० से -- विवाह केवक्त - वरहेतु, कामदेवकी - - मूर्ति, पूजी होगी ||
समीक्षा - हे ढूंढनी ! दौपदीने मद, मांस खाया, वैसा कहां
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