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पूर्ण भद्रादि यक्षोंका पूजन.
समीक्षा - प्रथम इस ढूंढनीने - वैसा लिखाया की, पथ्थरका - शेर, क्या मार लेता है ? और पथ्थरकी गौ क्या-दुध देती है ? वैसादृष्टांतोसे - मूत्तियों का, सर्वथा प्रकार - निःफलपणा, प्रगट कियाथा। अब इहां पै “ पूर्णभद्र यक्ष " और " मोगर पाणी यक्ष " आदकी - पत्थर की मूर्तियांका, पूजन करवाने का कहकर, अपणा सेबकोको, धन, दौलत, पुत्र, राज्य, आदि रिद्धि सिद्धिकी प्राप्ति करा देती है । मात्र वीतरागदेवकी मूर्त्तिका नजिक, इनके आश्रित जाते होंगे, तबही न जाने विमार पडजाती होगी ? या न जाने जिनंप्रतिमाका पूजन अधिक हो जानेसे, जो पूर्णभद्रादि यक्ष है सोअपणी पूजा, मानताका कमीपणा देख के, इस ढूंढनीके अंगमे - प्रवेश किया हो ? और तीर्थकरोंका, और गणधर महाराजाओं का, अनादर कराने के लीये, यह जिनमूत्तिका निषेधरूप-लेख, इस ढूंढनीकी पास लिखवाया हो ! क्योंकि जो विचार पूर्वक लेख होता तबतो-यह ढूंढनी सामान्यपणेभी - इतना विचार तो, अवश्यही करती कि -- जब पूर्णभद्रादि यक्षोंकी - पत्थररूप मूर्तियों की प्रार्थना, भक्ति सें-पुत्र, धन, दौलत, राज्य रिद्धि आदिक ते यक्षादिक देवताओ, दे देते थे, वैसा शास्त्र सम्मत है, तब क्या वीतरागदेवकी मूर्तियोंका भक्तिभाव देखके; जो वीतराग देवके भक्त - सम्यक धारी देवताओहै सो, प्रसन्न हो के हमारा इस लोकका दुःख, दालिद्रादि । तथा आधि, व्याधिभी, दूर करके अवश्य परलोक में भी -- सुखकी प्राप्ति करानेके, कारणरूप होतें । और परंपरासे अवश्यही - मोक्षकी प्राप्तिभी हमको होजाती । क्योंकि मनुष्यको दुखादिकमेही - अकत्ते - व्य करने पर लक्ष हो जाता है ? उस अकर्त्तव्योकाही - नरकादिक फल भोगने पडते है । फिर बहुत कालतक- संसार परिभ्रमण भी 1 करना पडता है । जब हमको दुःख, दालिद्र, आधिव्याधि सर्वथा
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