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'काही जागा सही भीतक कुलमें मूर्तिपूजन ध्यान वर कालीन "कोमा महावर, सिडन करणका प्रयत्न है सोनी, तेरा और आ शितोके धर्मका नाश करमेकाही प्रयत्न, इस साधिक फलको
विगी । और जो तूं अनुमान करती है कि बाह स्वामीजी के पैरों, तथा बौरा वर्षी बालके पीछे-लिखत लिन खकिय कर्क पडा ही? यहभी तेरा अनुमान, भोले जीवित प्रमा 'नेकाही -आज हजारो वरस हुक चला आता मूर्तिका पूजन विगंवा श्वेतांबर, यह दोनों सदके, लाल र स्तकार चढ गया हुवा है, उस पाठको लिखने-लिवान, फरूप
मान, औरती हैं। हम पुंछते है कि, सनातनप्रणेका जैन दावा कुस्ताले इंढको, कितने जैन पुस्तकोशी रचना करके, पंह जूद अमान कर गये है ? यह तेरे जैसे एक दो माधुनिक ढूंढकका किया हवा अनुमानतो, कोइ भोंदु,अथवा होगा सोई मान्य करेगा, परंतु विचक्षण पुरुष ते विचारही को
और लिखती है कि प्रत्ति खंडनी हठ है, वह इस भ्र.. मसे-लिखा गयाथा कि, जो शाश्वती मूर्तिये हैं वह २४ धर्मावत .. रोमें की हैं, उनका उत्थापकरूप, दोष लगनके मारणा-खंडममी इढ़ है, परंतु सीपकर देखागया तो, पूर्वोतं कारणसे वह लेख . हीक नही
..: पाठकग ! ढूंढनी कहती है कि, शीत मतमा २४ अव गारों की जानकर खंडन करणा, हठ मानाथा तो अब २४ .
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