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मिट्टीकी गौ दुध न देवे. (८७) ___ समीक्षा-जब कोइ मिट्टीकी गौ बनाके मारे, उसको तो हिंसा दोषकी प्राप्ति होवे । वैसा तो ढूंढनी मानती ही है. परंतु मि. ट्टीकी गौको पूजे तो-लाभकी प्राप्ति न होवे । वैसेही भगवान्की मूर्तिसे-प्रार्थना निःफल मानती है । हम पुछते है कि-कोइ पुरुष, है गौ माता ! हे गौ माता ! दुध दे, दुध दे, वैसा पुकार करनेवाला है उनको-दुध मीले के नहीं मिले ? तूं कहेंगी के उसकोभी-दुध काहेका मिले ? तब तो तूं, भगवानका-नाम, जपना भी निःफलही मानती होगी ? क्योंकि उसमें-लाभकी तो प्राप्ति मानती ही नहीं है। तूं कहेंगी के, भगवान्का-नाम देनेसे तो, हमको-लाभ होवें, तब तो गौ माताके-नामसेभी, तुमको-दुधकी प्राप्ति होनी चाहीये, तूं कहेंगी वैसा कैसे बने, तो पिछे भगवान्के नामसे भी, लाभ कैसें । होवे. इस वास्ते तेरा मंतव्य मुजब--नतो तुमको भगवान्के-नामसभी लाभ, और नतो भगवान्की--मूर्तिसेभी लाभ होगा, तो यह तुमको जो मनुष्यजन्म मिला है, सोभी निःफल रूप हो जायगा. और भगवान के साथ द्वेष करनेसे न जाने तुमेरे ढूंढकोंको-क्या क्या गति करनी पडेगी ? हमको तो-भगवान्का, नाम देतेभी कल्याणकी प्राप्ति होती है. और उनकी-मूर्ति देखनेसे, और उनके नामपै-खेरादभी फरनेसे परम कल्याणकी प्राप्ति होती है ।। और निर्भाग्य शेखरोंकों, भगवान्के--नामसे, और भगवान्की--मूर्तिसेभी, अकल्याणकी प्राप्ति होती होंगी तब इसमें दूसरेभी क्या करेंगे ! । ___ और विशेष यह है कि, नतो हम-दुधके वास्ते, गौका नाम लेते है, और नतो उनकी--मूर्तिके पाससेभी, दुधकी प्राप्ति होनेकी इछा करें. मात्र जिस* उद्देशसे ( अर्थात् जिस-कार्यके वास्ते ) ___* वीतरागसें प्रेम, और उनकी भक्तिसे-हमारा अघोर कर्मका नाशके वास्ते ॥
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