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( ८२ ) मूर्त्तिका पूजन नही नामभी तुमेरा जैसा नही.
नेसे तो शेर कभी नही - मारता है, और गौका - नाम उच्चारण करनेसे, नतो-दुधका मटका भरता है। जब तो तुम ढूंढको जे भगवानका - नाम, ले, लेके, पुकार करते हो, सोभी तुमेरा- निरर्थक ही हो जायगा, तब तो तेरा दिया हुवा दृष्टांत तुमको ही धर्मसें, भ्रष्ट करनेवाला होगा || हमको तो नाम, स्थापना, दोनो ही कल्याणकारी है । पाठकवर्ग ! इस ढूंढनीने, प्रथम एक सवैया लिखा । फिर ताकथइया ताकथइयासे, नाच कर दिखलाया । अब इस तिसरा दृष्टांत देके, भगवान्का - नाम स्मरण मात्र भी छुडवाके, न जाने उनके भोंदू सेवकोंको-कौनसें खड्डमें गेरेंगी ? | और पृष्ट १६२ ओ. ३ से-ढूंढक मतपणाको सनातनसे दावा बांधती है, तब तो आज ह जारो वरस से इनके पूर्वजो, मूर्तिपूजकोंके - खंडन करतेही आये होंगे, सो पुस्तके उनके पूर्वजों क्या-मरती वख्त साथ लेके चले गयेथें ? सो उनका कोईभी प्रमाण नही देती हूई, आजकालके मूढों का प्रमाण देती है ? और साक्षात् पार्वतीरूपका अवतार लेके, क्या तूंही दुनीयामें उतर आई है ? जो परमपवित्र रूप जिनमूर्त्तिका - खंड करनेको, इतना धांधल मचाया है. ?
ढूंढनी - अजी मूर्ति तो हम मानते हैं, परंतु मूर्तिका पूजन, नही मानते है | हम पुछते है कि, मूर्त्ति है सो - कोइमी जातकी कामना तो पूरी करनेवाली है नही, तो तूं मानतीही किस वास्ते है, ? क्या भोले जीवोंको भरमाती है. ? जिनमूर्त्तिके बदल तेरी कुतर्कों है सो तो तेराही - घात करनेवाली होगी. धर्मात्मा पुरुषोंको तो, जिनमूर्त्ति - सदाही कल्याणदाता - बनी हुई है, तेरी कुतकों सें क्या होनेवाला है ?
|| अब नाम भी तुमेरे जैसा नही ||
ढूंढनी - पृष्ट ४७ ओ ७ सें - हम तो-नामभी, तुम्हारीसी सम
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