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(६६) द्रव्य, और 'द्रव्य निक्षेप' का विचार. क्षणसे भी-सिद्धरूप है। इस वास्ते यह विकल्प ही जूठा है. । और . स्थापना निक्षेप है सो, मूल वस्तुकी आकृति अनाकृति रूपे, दू. सरी 'दश' प्रकारकी वस्तुमें स्थापित करके, पिछान करनेका शाखकारने दिखाया ही है. । इस वास्ते ' स्थापना, और ' स्थापना निक्षेप ' अलग अलग तीनकालमें भी नहीं बन सकते है । और म शास्त्रकारने दिखाया भी है.॥
॥ अब देखिये, ऋषभदेवके विषयमें, ढूंढनीका कहना-औ दारिक शरीर, स्वर्ण वर्ण, समचौरस संस्थान, वृषभ लक्षणादि १००८-लक्षण सहित, पद्मासन, वैराग्य मुद्रा, जिससे पहिचाने जायें कि-यह ऋषभदेव भगवान है, सो स्थापना.॥
पाठकवर्ग ? ढूंढनीजीकी धिठाई दखियेके जो तीर्थकर-पद्मासन युक्त, और वैराग्य मुद्रा सहित,सर्व लक्षण लक्षित,साक्षात् भगवानरूपे, भाव तीर्थकर पणाको प्राप्त हुयें है, उनको स्थापनारूपे कर दिखाती है? नतो सिद्धांत तरफ देखती है, और न तो अपणा किया हुवा ल. क्षणके तरफ भी देखती है, इनकी अज्ञता-कौनसें प्रकारकी समजनी,
और साक्षात्पणे भगवान् सो,-स्थापना, यह विचार किस गुरुके पाससे पढकर आई ?। और, पाषाणादिकमें-स्थापना निक्षेप, करणा सो तो सूत्रके कहने मुजब योग्य ही है.। इस वास्ते 'स्थापना',
और ' स्थापना निक्षेप, तीनकालमें भी नहीं बन सकता है. दंढनीजीकी तो अकल ही ठिकानेपर नही है।
इति स्थापना, और स्थापना निक्षेप,का विचार
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अब ढूंढनीजीका-द्रव्य, और द्रव्य निक्षेपका विचार करके दिखावते है.॥
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