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भगवान महावीर की नीति-अवधारणाएं | ४६
(५) अशुभ योग (मन, वचन, काव्य की निन्द्य एवं कुत्सित वृत्तियां)
दूसरी अपेक्षा से भी पांच प्रमुख आस्रव है-(१) हिंसा (२) मृषावाद-असत्य भाषण (३) चौर्य (४) अब्रह्म-सेवन और (५) परिग्रह ।।
स्पष्ट है कि यह सभी आस्रव अनैतिक हैं, समाज एवं व्यक्ति के लिए दुःखदायी हैं, अशान्ति, विग्रह और उत्पीड़न करने वाले है।
इन आस्रवों को-अनैतिकताओं को--अनैतिक प्रवृत्तियों को रोकना, इनका आचरण न करना, संवर है-नीति है, सुनीति हैं।
हिंसा आदि पांचों आस्रवों को पाप भी कहा जाता है, इसीलिए पाप अनैतिक है। किसी का दिल दुखाना, शारीरिक मानसिक चोट पहुँचाना, झूठ बोलना, चोरी करना, धन अथवा वस्तुओं का अधिक संग्रह करना, आदि असामाजिकता है, अनैतिकता है।
आज समाज में जो विग्रह, वर्ग-संघर्ष, अराजकता आदि पनप गये हैं, इनका मूल कारण उपरोक्त अनैतिक आचरण और व्यवहार ही है । एक ओर धन के ऊँचे अम्बार और दूसरी निर्धनता एवं अभाव की गहरी खाई ने ही वर्ग संघर्ष और असन्तोष को जन्म दिया है, जिसके कारण देश में, संसार में विप्लव उठ खड़ा हआ है।
इस पाप रूप अनैतिकता के विपरीत अन्य व्यक्तियों को सुख पहुंचाना, अभावग्रस्तों का अभाव मिटाना, रोगी आदि की सेवा करना, समाज में शान्ति स्थापना के कार्य करना, धन का अधिक संग्रह न करना, कटु शब्द न बोलना, मिथ्या भाषण न करना, चोरी हेरा-फेरी आदि न करना पुण्य है, नैतिकता है, नीतिपूर्ण आचरण है।
धर्मशास्त्रों के अनुसार बंध का अभिप्राय है-अपने ही किये कर्मों से स्वयं ही बंध जाना; किन्तु नीति के सन्दर्भ में इसका अर्थ विस्तृत है, व्यक्ति अपने कार्यों के जाल में स्वयं तो फँसता ही है, दूसरों को भी फंसाता है। जैसे मकड़ी जाला बुनकर स्वयं तो उसमें फँसती ही है; किन्तु उसकी नीयत मच्छरों को उस जाल में फंसाने की होती है और फँसा भी लेती है ।
इसी तरह कोई व्यक्ति झूठ-कपट का जाल बिछाकर, लच्छेदार और खुशामद-भरी मीठी-मीठी बातें बनाकर अन्य लोगों को अपनी बातों में बहलाता है, भुलावा देकर उन्हें वाग्-जाल में फँसाता है, उन्हें वचन की डोरी से बांधता है, जकड़ता है तो उसके ये सभी क्रिया-कलाप, वाग्जाल बंधनरूप होने से अनैतिक हैं।
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