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२० | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
भगवान ऋषभदेव का काल अत्यधिक प्राचीन है। वर्षों में इसकी गणना नहीं की जा सकती, किन्तु उनके द्वारा निर्धारित नीति के नियम समय प्रवाह के साथ यथावत् चलते रहे । युग बीतते गये।
श्रीकृष्ण के युग में भगवान नेमिनाथ द्वारा नीति के प्रत्ययों में एक और प्रत्यय जुड़ा; वह था-मांसाहार के प्रति विरक्ति । उस युग में क्षत्रियों में मांसाहार का प्रचलन हो गया था। ऐसे कुछ मांसाहारी क्षत्रिय भगवान नेमिनाथ की बारात में भी गये थे। उनके भोजन के लिए बहुत से पशुओं को एक बाड़े में बन्द कर दिया था। प्रभु नेमिनाथ को जब यह ज्ञात हुआ कि उनके बारातियों के भोजन के लिए इन निरीह मूक पशुओं की हत्या की जायेगी तो उनका हृदय दया द्रवित हो गया, और यह हत्या टालने के लिए वे अहिंसक असहयोग के रूप में स्वयं बारात से वापस लौटकर दीक्षित हो गये।
मांसाहार अहिंसा धर्म के विपरीत तो है ही, मानव-शरीर के लिए भी हानिकारक है। मानव में करता उत्पन्न करता है और क्रूर व्यक्ति अनीति का ही आचरण करता है। इसीलिए नेमिनाथ ने इस अनीतिपूर्ण कार्य के प्रति अहिंसक विरोध प्रगट किया और दया एवं प्राणी मात्र की रक्षा की नीति पर बल दिया।
भगवान पार्श्वनाथ ने कमठ तापस के ढोंग और पाखण्ड का पर्दाफाश करके सरलता और सत्यता की नीति स्थापित की। समाज में क्रियाकांडों को जगह जीवमात्र के प्रति दया की महत्ता और सत्यप्रिय होने का आदर्श स्थापित किया।
__भ० महावीर अपने युग के अप्रतिम व्यक्तित्व थे। उन्होंने पशुवध, हिंसक यज्ञ आदि तथा उस युग में प्रचलित मिथ्या विश्वासों, वर्ण व्यवस्था की जटिलता, दास जैसी घृणित प्रथा की नींव हिलाकर मानव की श्रेष्ठता की स्थापना की, स्त्री जाति का गौरव पुनः स्थापित किया और नीति के सार्वभौम सिद्धान्त निर्धारित किये ।।
वैदिक नीति वैदिक परम्परा का आदि ग्रन्थ ऋग्वेद है। वहीं से वैदिक परम्परा
१. भगवान महावीर की नीति का विस्तृत विवरण अध्याय ३ में दिया गया है।
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