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________________ १६ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन ज्ञान-विज्ञान आदि प्रत्येक उपयोगी शाखा के लिए यही सिद्धान्त लागू होता है। प्रत्येक ज्ञान-विज्ञान मानव की आवश्यकता के आधार पर ही अस्तित्व में आता है और देश-काल की परिस्थितियाँ इसकी उन्नति और विकास में सहयोगी बनती हैं । मानव की क्षण-क्षण बदलती/बढ़ती आवश्यकता और परिस्थितियों के परिवर्तन ज्ञान-विज्ञान के विकास के मूलभूत घटक हैं। नीतिशास्त्र भी इन घटकों का अपवाद नहीं है। इसकी उत्पत्ति और विकास में भी इन दोनों तत्त्वों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। __यहाँ हम पहले भारतीय नीतिशास्त्र की उत्पत्ति और विकास का वर्णन करेंगे तदुपरान्त चीन देश के नीतिशास्त्र का और अन्त में पाश्चात्य नीतिशास्त्र का । इसके बाद भारतीय और पाश्चात्य नीतिशास्त्र का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करेंगे। नीतिशास्त्र की उत्पत्ति और विकास (भारतीय दृष्टिकोण) भारत में संस्कृति की दो धाराएँ अति प्राचीन काल से चली आ रही हैं। इनमें से प्रथम है श्रमण संस्कृति और दूसरी को वैदिक संस्कृति कहा जाता है । भगवान पार्श्वनाथ के निर्वाण के उपरान्त श्रमण संस्कृति दो उपधाराओं में विभाजित हो गई। इनमें से मूल धारा तो जैन संस्कृति ही रही और दूसरी धारा बौद्ध संस्कृति की अभिधा से अभिहित हुई। इस प्रकार भारतीय संस्कृति की तीन धाराएँ हो गई -(१) जैन संस्कृति, (२) बौद्ध संस्कृति और (३) वैदिक संस्कृति । वैदिक संस्कृति भी सांख्य, योग, वेदान्त आदि विभिन्न विचारधाराओं में विभाजित हुई; किन्तु नीति की दृष्टि से चार्वाक विचारधारा अधिक उल्लेखनीय है; क्योंकि इसका दर्शन भौतिकवादी है, इसी कारण इसने जो नैतिक नियम निर्धारित किये वे भी भौतिकता अथवा शरीर-सुख प्रधान थे; जबकि भारत की अन्य सभी विचारधाराएँ आध्यात्मिकता प्रधान रहीं। नीति-शास्त्र की उत्पत्ति भारत की तीनों प्रमुख विचारधाराओं (जैन, वैदिक और बौद्ध) ने मानवीय उन्नति और विकास के सन्दर्भ में एक ऐसा युग स्वीकार किया है, जबकि मानव को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किसी प्रकार का श्रम नहीं करना पड़ता था। उसकी सभी इच्छाएँ और आवश्यकताएँ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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