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परिशिष्ट : हिन्दी साहित्य की सूक्तियाँ | ५०१
भूषन रतन अनेक जग, पै न सील सम कोय । सील जासु नैनन बसत, सो जग भूषन होय ॥
-रत्नावली दोहा० पृ. १४४
सत्य
वचन आपनो सत्य करि, रतन न अनिरत भाषि । अनृत भाषिवौ पाप पुनि, उठति लोक सौं साषि ॥
-रत्नावली दोहावली, १६६
समय
दुख सुख धन जीवन मरन पैये बार करोर । बीत गयो जो फिर कबौ समय न मिलत बहोर ।।
--ब्रज सतसई ८६ तृषित बारि बिनु जो तन त्यागा। मुये करै का सुधा तड़ागा ॥ का बरषा जब कृषी सुखाने । समय चूक पुनि का पछताने ।
-रामचरितमानस १/२६१
सरल .
अति ही सरल न हूजिए देखो जो वनराय । सीधे सीधे छेदिये, बाँको तरु बच जाय ।।
-वृन्द
साथी
तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवेक । 'साहस सूकृत सत्यव्रत रामभरोसो एक ॥ तुलसी असमय के सखा साहस धर्म विचार । सुकृत सील स्वभाव ऋजु रामसरन आधार ॥
—तुलसी सतसई ७/४६,४७
साधु वही जो काया साधे । सब कछु छोड़ि ईस आराधे ॥
- नीति छन्द०
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