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५०० | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
व्यापार
रोजगार बानिज्य को सुखप्रद अरु स्वच्छन्द । जामे निज लछिमी बसति देर करत मति मंद ।।
-सुधा सरोवर पृ० ४७ अलग-अलग व्यापार में, बहुव्यय स्रम लघु आय । या ते मिलिकर कम्पनी, कारज करह बनाय ।।
--सुधा सरोवर, पृ० ४८ श्रम चातुरी एकाग्रता अरु सच्चा व्यवहार । समय ज्ञान और नम्रता मूल मन्त्र व्यापार ।।
--नीति छन्द
शरीर
'सुन्दर' देह मलीन अति, बुरी वस्तु को भौन । हाड़ मांस को कोथरा, भली वस्तु कहि कौन ।।
--सन्दर ग्रन्थ पृ० ७२० सबै सुखन को सोत, सतत निरोग शरीर है। जगत जलधि को पोत, परमारथ पथ रथ यहै ।।
--दुलारे दो० ३५
शत्रु
सांई वैर न कीजिए गुरु पंडित कवि यार । बेटा बनिता पंवरिया यज्ञ करावनहार ।। यज्ञ करावनहार राजमंत्री जो होई । विप्र पड़ौसी वैद्य आपकी तपै रसोई ।। कह गिरिधर कविराय जुगन तैं यह चलि आई। इन तेरह सौ तरह दिये बनि आवै भाई ।।
--गिरधर कुण्डलिया, पृ० १६ इसका अधुनिक रूप है--
सांई वैर न कीजिए गुरु नेता कवि यार । बेटा संपादक घरनि औ जो खिदमतगार ।। औ जो खिदमतगार राज्य अधिकारी होई । भाई पड़ौसी वैद्य आपकी तपै रसोई ।। कह गिरिधर कविराय, जुगन ते यह चलि आई। इन तेरह सौं तरह दिये बनि आवै भाई ।।
--नीति छन्द
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