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अचौर्य
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प्राकृत
जैन साहित्य की सूक्तियाँ
लोभाविले आययई अदत्तं ।
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- उत्तराध्ययन ३२ / २६
मनुष्य लोभ से व्याकुल अथवा प्रेरित होकर चोरी करता है । अदत्तादाणं अकित्तिकरणं''''अणज्जं ''''सया साहुगरहणिज्जं
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- प्रश्नव्याकरण सूत्र १ / ३ चौरी अपयश करने वाला एक अनार्यकर्म है । यह सभी सज्जनों द्वारा सदा निन्दनीय है ।
परदव्व हरणमेदं- आसवदारं खु वेंति पावस्स । सोरिय - वाह-परदारयेहि चोरो हु पापदरो ||
- भगवती आराधना ८६५ / ९८४ परद्रव्य हरण करना पाप का आगमन द्वार है । सूअर की हत्या करने वाले, मृग आदि को पकड़ने वाले तथा परस्त्रीगमन करने वाले से भी चोर अधिक पातकी गिना जाता है ।
जो बहुमुल्लं वत्थु अप्पयमुल्लेण णेव गिण्हेदि । वीसरियंपि ण गिण्हदि लाहे थोवे वि तूसेदि ॥ जो परदव्वं ण हदि मायालोहेण कोहमाणेण । दिढचित्तो सुद्धमई अणुव्वई सो हवे तिदिओ || - कार्तिकेयानुप्रेक्षा ३३५-३३६
जो व्यक्ति किसी की बहुमूल्य वस्तु को अल्पमूल्य में नहीं लेता, दूसरे की गिरी हुई वस्तु को उठाकर लेता नहीं और थोड़े से लाभ से संतुष्ट रहता है, तथा क्रोध, लोभ, माया तथा मान से दूसरे के द्रव्य का हरण नहीं करता वह शुद्ध विचार वाला दृढ़ निश्चयी अचौर्य अणुव्रती है ।
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