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नीति की सापेक्षता और निरपेक्षता | ४२६
उदाहरणतः अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह आदि नियम सिद्धान्तः नैतिकता के निरपेक्ष रूप हैं, जब कि इनका व्यवहारतः पालन सापेक्ष नैतिकता की अपेक्षा रखता है ।
इसी प्रकार कहा जा सकता है कि साध्य अथवा नैतिक आदर्श निरपेक्ष होता है, जबकि उस साध्य अथवा नैतिक आदर्श का प्राप्ति का साधनामार्ग, पुरुषार्थ, आदि नैतिक सापेक्षता हैं ।
संक्षेप में, जैन नीति के अनुसार निश्चय दृष्टि निरपेक्ष नैतिकता है और व्यवहार दृष्टि अथवा व्यावहारिक आचार-विचार, क्रिया-कलाप नीतिसापेक्ष पहलू है ।
जैन-नीति के अनुसार निरपेक्षता और सापेक्षता दोनों का समन्वित रूप ही नैतिकता की संपूर्णता है ।
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