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जैन नीति और नैतिक वाद | ३८१
तुम ही स्वयं हो। साथ ही मानसिक अथवा मनोवैज्ञानिक सुख से ऊपर उठकर आत्मिक सुख की ओर लक्ष्य रखती है, यही इसका ( जैन नैतिकता का) अभीष्ट है । पश्चिमी नैतिकता इसी बिन्दु पर जैन नैतिकता से पिछड़ जाती है ।
नैतिक सुखवाद अथवा उपयोगितावाद
नैतिक सुखवाद की दो अवधारणाएँ हैं(१) सुख का अनुसरण करना चाहिए । (२) सार्वजनीन सुख ही काम्य है ।
यह दूसरी अवधारणा उपयोगिता वाद के नाम से अभिहित की जाती है । उपयोगितावाद के दो भेद किये जाते हैं - ( १ ) प्राचीन अथवा स्थूल (Ancient or gross) उपयोगितावाद और ( २ ) आधुनिक अथवा परिष्कृत (modern or refined ) उपयोगितावाद |
बैन्थम ने अपने नैतिक सिद्धान्त में स्थूल और परिष्कृत उपयोगितावाद का सामंजस्य करने का प्रयत्न किया है । इन दोनों में सादृश्य और वैभिन्नय निम्न प्रकार हैं
१. दोनों का ही लक्ष्य सुख है ।
२. स्थूल सुखवाद ( उपयोगितावाद ) निराशावादी था और परिष्कृत उपयोगितावाद आशावादी है ।
३. प्राचीन वैयक्तिक था और आधुनिक सार्वजनीन ।
४. आधुनिक सुखवाद ( उपयोगितावाद ) अधिक विकसित है ।
बैन्थम के अनुसार उपयोगितावाद का अर्थ अधिक से अधिक व्यक्तियों का अधिक से अधिक सुख है । यह अर्थ इतना महत्वपूर्ण है कि इसे उपयोगिता सूत्र (formula or principle of utility) कहा जाता है । उपयोगिता सूत्र के निम्न रूप मिलते हैं
१. अधिक से अधिक सुख ( greatest happiness ) ।
२. उच्चतम सुख ( maximum happiness)।
१ जं हंत्तव्वति मन्नसि -- आचारांग १
संगमलाल पाण्डेय : नीतिशास्त्र का सर्वेक्षण, पृ० १५१.
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