SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चार में नीति ५०, भगवान महावीर की विशिष्ट नीति ५१, अनाग्रह नीति ५१; अनेकांत नीति ५२, यतना नीति ५३, समता नीति ५३, अनुशासन एवं विनय नीति ५५, सामूहिकता की नीति ५६, स्वहित और लोकहित ५७, महावीर युग की नैतिक समस्याएँ और भगवान द्वारा समाधान ६०, उपसंहार ६३ । ४. नीतिशास्त्र की परिभाषा ६५-७६ 'नीतिशास्त्र' शब्द व्युत्पत्ति की दृष्टि से ६५, नीतिशास्त्र की आदर्श परिभाषा ६६, नीति और धर्म का एकत्व और अनेकत्व ६७, नीतिशास्त्र की समाजपरक परिभाषाएँ (भारतीय चिन्तन) ६७, पाश्चात्य चिन्तन ७०, Ethics शब्द की व्युत्पति ७२, पाश्चात्य चिन्तकों की नीति सम्बन्धी परिभाषाएँ ७३, भारतीय दृष्टिकोण ७७, भ० महावीर के नीति वचन ७८ । . ५. नीतिशास्त्र की प्रकृति और अन्य विज्ञान ५०-६३ ___ नीतिशास्त्र की प्रकृति ८०, नीतिशास्त्र का अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध ८३, नीतिशास्त्र और भौतिक विज्ञान ८५, नीतिशास्त्र और जीवशास्त्र ८६, नीतिशास्त्र और राजनीति ८६, नीतिशास्त्र और समाजशास्त्र ८८, नीतिशास्त्र और मनोविज्ञान ८६, नीतिशास्त्र और अर्थशास्त्र ६०, नीतिशास्त्र और धर्मशास्त्र ६१, नीतिशास्त्र और दर्शनशास्त्र ६२ । ६. नीतिशास्त्र के विवेच्य विषय ६४-१०४ न्याय का विवेचन ६५, कर्तव्य का विवेचन ६६, श्रेय का विवेचन ६७, सदाचार का विवेचन ६६, मूल्य का विवेचन १०१ ॥ ७. नैतिक प्रत्यय १०५-१३४ नैतिक प्रत्यय का तात्पर्य १०५, नैतिक प्रत्ययों का विश्लेषण १०६, नैतिक शुभ १०८, नैतिक उचित १०६, नैतिक कर्तव्य १०६, सद्गुण १११, पुण्य और पाप ११२, संकल्प की स्वतन्त्रता ११३, वर्णाश्रम व्यवस्था ११६, त्रिऋण विचार १२३, पुरुषार्थ चतुष्टय विचार १२४, निवृत्ति-प्रवृत्ति प्रत्यय १२८, कर्म का प्रत्यय १२९ पुनर्जन्म : नैतिक प्रत्यय १३१, संस्कार प्रत्यय १३३, उपसंहार १३४ । ( ३१ ) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy